NI प्राकृतिक बुद्धि (Natural Intelligence) से (Artificial Intelligence) कृत्रिम बुद्धि अथवा मशीनी बुद्धि तक के विकास क्रम में यह कहना अनुचित नहीं होगा कि हम मशीन अथवा AI के गुलाम बनते जा रहे हैं।
मनुष्य अपने विकास क्रम में अनेक प्रकार के आविष्कार करता गया। इन सभी आविष्कारों का आधार प्राकृतिक, मानवीय बुद्धि थी लेकिन पूर्व आविष्कार के मूल आधार प्राकृतिक, मानवीय बुद्धि को चुनौती देने वाला नये आविष्कार का जन्म किया गया जिसे AI कृत्रिम बुद्धि कहा जाता है।
AI ने मानव विकास की धुरी मानवीय, प्राकृतिक बुद्धि रूपी मूल आधार को हिला-डुला रहा है और इसपर पूर्णतः कब्जा करने के लिए तैयार है। अन्य शब्दों में हमारे सम्पूर्ण जीवन का स्वास्थ्य मशीनी हो गया है। मशीनी विकास के क्रम में प्राकृतिक मानव का अनिवार्य लक्ष्य संवेदना का लुप्त हो जाना स्वाभाविक है।
प्रख्यात समकालीन दार्शनिक एवं गणितज्ञ लुडविग विट्गेन्स्टाइन का कहना है यदि समस्याएं हैं तो समाधान है यदि समाधान नहीं है तो समस्याएं भी नहीं हैं, लेकिन समस्या तो है ही। प्रश्न है कि जब समस्या है तो समाधान क्या हैै? इसका उत्तर है स्वंय के प्रति उत्तरदायी बनना और समाज के प्रति उत्तरदायी बनना।
इस समस्या के मूल समाधान में मानवीय संवेदना को विकसित करना है इसके लिए हमें AI तकनीक का प्रयोग करते हुए मानवीयता को अनिवार्यतः संयुक्त रूप से साथ रखना है अर्थात AI के प्रयोग के समय जागरूकता जरूरी है।
जागरूकता के आयाम में AI
जागरूकता के संदर्भ में सबसे पहले हमें इसके प्रयोग की आदत नहीं बनानी चाहिए अर्थात इसका प्रयोग कम से कम अथवा आवश्यकता पड़ने पर ही करना चाहिए क्योंकि AI और मानव के बीच का प्रमुख अन्तर सृजनशीलता और संवेदना ही है।
यदि AI का प्रयोग हमारी आदत में आ जायेगा तो हमारा मूल स्वभाव सृजनात्मकता और संवेदनशीलता हमसे दूरी हो जायेगी क्योंकि यदि हम अपनी स्वभाविक आदत का प्रयोग नहीं करते हैं तो यह लुप्त हो जायेगी इसलिए अपने मानवीय अस्तित्व अर्थात सृजनशीलता और संवेदनशीलता को बचाये रखना है तथा अपने ऊपर मशीन या अमानवीयता को हावी नहीं होने देना है इसके लिए AI का प्रयोग जागरूकता के साथ करने की आवश्यकता है।
यदि AI का प्रयोग करना पड़े तो इसे नियंत्रित रूप में तथा AI का मालिक बनकर करना चाहिए ना कि गुलाम। हम स्वंय के प्रति ही नहीं बल्कि समाज के प्रति भी जिम्मेदार हैं। हम AI का प्रयोग करके अपना समय बचा लेते हैं और सुविधाभोगी मानसिकता के कारण बार-बार समय की बचत के लोभ में AI के प्रयोग को अपनी आदत बना लेते हैं। AI प्रयोग करने की हमें लत पड़ जाती है। हमें यह भी देखना होगा कि AI के प्रयोग से जो भी समय की बचत हुई है वह आभासी है अथवा वास्तविक। इसलिए AI प्रयोग से प्राप्त आभासी बचत को वास्तविक बचत में बदलकर इसका उपयोग चैटिंग इत्यादि के स्थान पर मानवता के विकास अथवा व्यक्तित्व विकास में किया जा सकता है।
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