*💥पावन पर्व हरतालिका तीज की परमार्थ निकेतन से शुभकामनायें*
*✨गुरु रामदास जी महाराज के ज्योति ज्योत दिवस पर उनकी निष्ठा व राष्ट्रभक्ति को नमन*
*🌸नारी शक्ति, समाज और संस्कृति की आधारशिला*
*🙏🏾स्वामी चिदानन्द सरस्वती*
26 अगस्त, ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन से पावन पर्व हरतालिका तीज एवं सिख पंथ के चतुर्थ गुरु, गुरु साहिब श्री गुरु रामदास जी महाराज का ज्योति ज्योत दिवस पर अनेकानेक शुभकामनायें।
हरतालिका तीज के अवसर पर गंगा तट पर विशेष प्रार्थना, संकीर्तन एवं आरती का आयोजन किया गया। हरतालिका तीज केवल एक पर्व या परंपरा नहीं है, बल्कि यह नारी शक्ति की त्यागमयी शक्ति, अटूट संकल्प और समर्पण का अद्वितीय प्रतीक है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि नारी शक्ति समाज और संस्कृति की आधारशिला है। नारी का स्वरूप केवल परिवार तक सीमित नहीं है, बल्कि वह पूरे समाज और संस्कृति की दिशा निर्धारित करता है। सनातन परंपरा में गार्गी और मैत्रेयी जैसी विदुषी नारियों ने ज्ञान, तपस्या और आध्यात्मिक शक्ति से यह सिद्ध किया कि नारी केवल गृहिणी नहीं, बल्कि संस्कृति की वाहक और ज्ञान की धारा है। आज आवश्यकता है कि हम इन आदर्शों को स्मरण करते हुए आधुनिक समाज में नारी को समान अवसर दें। शिक्षा, सम्मान और नेतृत्व के क्षेत्र में नारी का सशक्तिकरण ही सच्चे अर्थों में राष्ट्र और मानवता का सशक्तिकरण है।
नारी का त्याग, तप और करुणा ही परिवार और राष्ट्र की स्थिरता का आधार है। हरतालिका तीज हमें यह प्रेरणा देती है कि हम प्रकृति में आस्था रखें, अपने जीवन में संयम और साधना का समावेश करें तथा पर्यावरण संरक्षण और पारिवारिक सौहार्द को प्राथमिकता दें।”
यह पर्व हमें याद दिलाता है कि हमारी परंपराएँ व अनुष्ठान, जीवन मूल्य और संस्कार हैं। जब नारी सशक्त और संतुलित होती है तो पूरा समाज समृद्ध और उन्नत होता है।
परमार्थ निकेतन परिवार ने सिख परंपरा के चतुर्थ गुरु, श्री गुरु रामदास जी महाराज के ज्योति ज्योत दिवस पर गंगा जी की आरती के माध्यम से विशेष श्रद्धांजलि अर्पित की। गुरु साहिब की वाणी और सेवाभाव को याद करते हुए स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने अपने संदेश में कहा कि गुरु रामदास जी का जीवन त्याग, सेवा और करुणा का प्रतीक है। उन्होंने न केवल अध्यात्म का प्रकाश फैलाया, बल्कि समाज को सच्चाई, समानता और भाईचारे के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।
स्वामी जी ने कहा, गुरु रामदास जी का दर्शन है कि सच्ची भक्ति केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं होनी चाहिये बल्कि सेवा और समर्पण में ही उसका वास्तविक स्वरूप प्रकट होना चाहिये है। उनकी अमर वाणी आज भी मानव समाज को एकजुट होकर सत्य, न्याय और शांति की दिशा में आगे बढ़ने का आह्वान करती है।
स्वामी जी ने कहा कि हम सभी अपनी संस्कृति और परंपराओं से जुड़े रहें। जब हम त्याग, सेवा और साधना के मार्ग पर चलते हैं तो जीवन में प्रेम, शांति और सद्भावना का विस्तार होता है। यही पर्वों और महापुरुषों के जीवन का वास्तविक संदेश है।
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