September 26, 2025

आईआईटी रुड़की के अध्ययन में शिव मंदिरों का प्राकृतिक संसाधनों के हॉटस्पॉट के साथ संरेखण पाया गया*

*आईआईटी रुड़की के अध्ययन में शिव मंदिरों का प्राकृतिक संसाधनों के हॉटस्पॉट के साथ संरेखण पाया गया*

– अमृता विश्व विद्यापीठम (भारत) एवं उप्साला विश्वविद्यालय (स्वीडन) के सहयोग से एक ऐतिहासिक अध्ययन किया 

– 79° पूर्व मध्याह्न रेखा के साथ संरेखित 8 प्रतिष्ठित शिव मंदिर उच्च प्राकृतिक संसाधन उत्पादकता वाले क्षेत्रों में स्थित

– उपग्रह डेटा, पुरातात्विक साक्ष्य एवं मंदिर भूगोल से प्राचीन पर्यावरणीय दूरदर्शिता उजागर

– अध्ययन में पाया गया कि मंदिर स्थल कृषि, जल विद्युत, पवन एवं सौर ऊर्जा के उच्च उत्पादक क्षेत्रों से जुड़े

 रुड़की : प्राचीन भारतीय ज्ञान और आधुनिक वैज्ञानिक विश्लेषण को जोड़ते हुए आईआईटी रुड़की के शोधकर्ताओं ने अमृता विश्व विद्यापीठम (भारत) एवं उप्साला विश्वविद्यालय (स्वीडन) के सहयोग से एक ऐतिहासिक अध्ययन किया है। इसमें पाया गया कि देशभर के आठ प्रमुख शिव मंदिरों का स्थान न केवल गहन आध्यात्मिक महत्व रखता है, बल्कि जल, ऊर्जा और खाद्य उत्पादकता के उच्च केंद्रों से भी मेल खाता है।

ह्यूमैनिटीज़ एंड सोशल साइंसेज कम्युनिकेशंस (नेचर पोर्टफोलियो) में प्रकाशित इस अध्ययन के अनुसार, केदारनाथ (उत्तराखंड) से लेकर रामेश्वरम (तमिलनाडु) तक ये मंदिर 79° पूर्वी देशांतर रेखा के आसपास स्थित शिव शक्ति अक्ष रेखा (SSAR) पर पाए गए। उपग्रह डेटा और पर्यावरणीय विश्लेषण से यह स्पष्ट हुआ कि यह संरेखण जल संसाधन उपलब्धता, कृषि उपज और नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता से समृद्ध क्षेत्रों में है।

मुख्य अन्वेषक प्रो. के.एस. काशीविश्वनाथन (डब्ल्यूआरडीएम विभाग, आईआईटी रुड़की) ने कहा कि यह शोध दर्शाता है कि प्राचीन भारतीय सभ्यताओं को प्रकृति एवं स्थायित्व की गहरी समझ रही होगी, जिसने मंदिर निर्माण के स्थान चयन में मार्गदर्शन दिया। निदेशक, आईआईटी रुड़की, प्रो. कमल किशोर पंत ने कहा कि यह अध्ययन इस बात का प्रमाण है कि प्राचीन ज्ञान और आधुनिक विज्ञान एक-दूसरे के पूरक हो सकते हैं।

अध्ययन में बताया गया कि ये मंदिर केवल आस्था स्थल ही नहीं बल्कि पंचतत्वों (पंचभूत) के प्रतीक और संसाधन नियोजन के सभ्यतागत संकेतक भी रहे होंगे। प्रमुख लेखक भाबेश दास ने कहा कि प्राचीन मंदिर निर्माता पर्यावरण योजनाकार भी थे, जिनके निर्णय भूमि, जल और ऊर्जा संसाधनों की गहरी समझ से प्रेरित थे। सह-अन्वेषक प्रो. थंगा राज चेलिया ने इसे एक उल्लेखनीय अंतःविषय सहयोग बताया, जो विरासत और जलवायु लचीलेपन के बीच सेतु का काम करता है।

यह निष्कर्ष दर्शाते हैं कि भारत की सांस्कृतिक धरोहर में रणनीतिक पर्यावरणीय अंतर्दृष्टि निहित है, जिसे आज सतत विकास और जलवायु चुनौतियों का समाधान खोजने के लिए पुनः लागू किया जा सकता है।