November 23, 2024

छठे विश्व आपदा प्रबंधन सम्मेलन में जारी- देहरादून डिक्लेरेशन

देहरादून।आपदा प्रबन्धन पर छठा विश्व सम्मेलन ।इस छठे विश्व सम्मेलन का केन्द्रीय विषय रहा है- जलवायु क्रियाशीलता एवं आपदा-सम्मुख लचीलेपन को सुदृढ़ करना विशेषतः पर्वतीय पारिस्थितिकी प्रणालियों और समुदायों के सन्दर्भ में।

यह विश्व सम्मेलन अथर्ववेद में वर्णित मन्त्र
*धरती माता और मैं धरती का पुत्र हूं* की अभिप्रेरणा को पुनस्र्स्थापित करता है कि हम भारतवासियों के लिए यह धरती पवित्र है, यह हिमालय पूज्य है। पारिस्थितिकी के प्रति हमारी संवेदना अपनी माँ, पृथ्वी के प्रति हमारा आदर एवं समर्पण है, हमारी श्रद्धा है।

*केन्द्रीय मान्यता*

यह विश्व सम्मेलन विश्व की सबसे युवा पर्वतीय प्रणाली की चुनौतियों, स्थानीय समुदायों के अनुभवों और इन प्रणालियों पर निर्भर जनजीवन का संज्ञान लेता है। हिमालय निरन्तर बढ़ते पर्यावरणीय संकटों, आपदाओं और जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न वैश्विक संकटों का सजीब उदाहरण है। संतुलित प्रणालियों और समुदायों की सक्रिय भागीदारी ऐसे संकटों खतरों और आपदाओं से निबटने में अत्यन्त सहायक सिद्ध होती है। यह विश्व सम्मेलन ऐसी कार्ययोजनाओं को प्रस्तावित करता है जिन्हें सभी हिमालयी राज्यों में प्राथमिकता के आधार पर लागू करने की आवश्यकता है और जो न केवल विश्व की सम्पूर्ण पर्वतीय प्रणालियों के लिए बल्कि जो अन्य सम्बन्धित क्षेत्रों के लिए भी अत्यन्त लाभप्रद सिद्ध हो सकेंगी।

*क्रियान्वयन के सन्दर्भ*

*आपदा सम्मुख लचीलेपन (Resilience) की तैयारी को सुदृढ़ बनाना*

पर्वतीय राज्यों के भावी कर्णधार युवाओं को आपदा प्रचन्धन की दिशा में विशेष रूप से तैयार करने की आवश्यकता है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु स्कूल/कॉलेज सुनिश्चित करना, गतिमान परियोजनाओं की निरन्तर निगरानी और मूल्यांकन की अवधारणा को अनुकूल एवं सुदृढ़ बनाना प्रमुख रूप से अनिवार्य है।

*पर्वतीय समुदायों का सशक्तीकरण*

• सामुदायिक भागीदारी और स्थानीय समुदायों के सम्मुख आने वाले विशिष्ट जोखिमों के बारे में उन्हें पूर्णरूपेण शिक्षित करना, और आपदाओं का सामना करने के लिए उन्हें तैयार करना आवश्यक है। पारिस्थितिकी की बेहतर समझ और सामुदायिक भागीदारी के लिए पारम्परिक ज्ञान और स्थानीय भाषा-संस्कृति का व्यापक पैमाने पर उपयोग सुनिश्चित किए जाने की आवश्यकता है।

• सामुदायिक समझ पर आधारित प्रारम्भिक चेतावनी प्रणालियों में स्थानीय ज्ञान परम्परा का समावेश एवं प्रारम्भिक चेतावनी संकेतों की निगरानी और आपदा राहत कार्यों में स्थानीय समुदाय की सहभागिता आवश्यक है।
• आर्थिकी के दुर्बल क्षेत्रों पर निर्भरता कम करने के लिए आजीविका और आजीविका प्रणालियों को मज़बूत और विविध बनाना, तथा इस भाँति आपदा-राहत की तैयारी, प्रतिक्रिया और पुनर्स्थापना सुनिश्चित करना आवश्यक है।

• आपदा प्रतिरोधी व्यवस्थाओं हेतु सहयोग बढ़ाने के लिए समुदायों, स्वयं सहायता समूहों, सरकारी, गैर-सरकारी संस्थानों और अन्य हितधारकों के बीच नेटवर्क और साझेदारी की स्थापना सुनिश्चित करना आवश्यक है।

*नीति एकीकरण का समर्थन*

• उन नीतियों और व्यवस्थाओं के पूर्णरूपेण समर्थन की आवश्यकता है जो आपदा जोखिम की दुर्बलताओं पर ध्यान केन्द्रित करती हैं और समय-समय पर आपदा प्रतिरोध को सुदृढ़ बनाती हैं। राज्य में एक ऐसे अत्याधुनिक ‘आपदा प्रबन्धन संस्थान’ की स्थापना अत्यन्त आवश्यक है, जो हिमालय में आपदा जोखिम लचीलेपन के लिए अनुकूल नीतियों
तथा कार्यवाहियों का इनपुट प्रदान करने पर विशेष रूप से केन्द्रित हो।

• इस संस्थान को आपदा जोखिम के लिए समुचित तैयारी और रणनीतियों की स्थापना के लिए आवश्यक ज्ञान, डेटाबेस तथा सूचना प्रणालियों को विकसित करने के लिए एक मिशन मोड पर स्थापित किया जाना चाहिए।

• हिमालय में आपात स्थिति और महामारी की स्थिति में टिकाऊ पारिस्थितिकी तन्त्र, सुरक्षित वातावरण तथा स्वास्थ्य सेवाओं के सभी घटकों की आवश्यक तैयारी सुनिश्चित करना।

*नवाचार के प्रति प्रतिबद्धता*

• आपदा प्रतिरोध हेतु सुसज्जित समाज के लिए नवीन दृष्टिकोण, तरीक़ों, व्यवस्थाओं और तन्त्रों में योगदान करने के लिए हिमालयी ज्ञान प्रणालियों को मज़बूत करना।

• दुरूह, संवेदनशील और नाजुक इलाकों में आपदा जोखिम लचीलेपन और प्रतिक्रिया की सर्वोत्तम व्यवस्थाओं के मध्य सहयोग और उनका सफल संचारण।

• हिमालय में आपात स्थिति और आपदा जोखिम लचीलेपन के लिए नये उपकरण और ऐप्लीकेशन विकसित करने हेतु स्टार्ट-अप और उद्यमिता में निवेश को प्रोत्साहित करना।

• हिमालयी राज्यों और पर्वतीय पारिस्थितिकी प्रणालियों के लिए लचीलापन, पुनर्स्थापना और प्रतिरोध के सिलक्यारा मॉडल के अनुरूप नयी व्यवस्थाएँ विकसित करना।

उपर्युक्त के साक्ष्य-सम्मुख, छठे विश्व सम्मेलन के प्रतिभागी एवं आयोजक हिमालय और हिमालयी समुदायों के पारिस्थितिकी तन्त्र के लचीले और टिकाऊ भविष्य की दिशा में अथक प्रयास करने के लिए दृढ़प्रतिज्ञ हैं, जिससे एक सुव्यवस्थित और सुरक्षित विश्व की संकल्पना हेतु वैश्विक प्रयास में योगदान प्रदान किया जा सके।

पाठ्यक्रम में आपदा, आपदा जोखिम न्यूनीकरण और आपदा-सम्मुख लचीलेपन (disaster resilience) पर विशेष पाठ्य-घटक होने चाहिए।

• आपदा से निपटने के दौरान समाज के कमजोर वर्गों, जैसे बच्चों, महिलाओं एवं वृद्धजनों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। इस सन्दर्भ में यह विश्व सम्मेलन नियम तथा विधायी ढाँचे स्थापित करने का प्रस्ताव करता है।

• दिव्यांग समुदायों की भागीदारी सहित समावेशिता, विचार-विमर्श के एक महत्वपूर्ण विषय के रूप में उभरी है। विशेष रूप से इस समूह को ध्यान में रखते हुए ‘उत्तरजीविता का विज्ञान’ (Science of Survival) विकसित करने की आवश्यकता इसका एक महत्वपूर्ण घटक है।

• यह विश्व सम्मेलन सभी सम्बन्धित परियोजनाओं और उनके क्रियान्वयन के लिए आपदा जोखिम न्यूनीकरण तथा आपदा प्रतिरोध के लिए बजट आवंटन या सी.एस.आर. के माध्यम से विशेष वित्तीय उपकरणों की आवश्यकता का भी संज्ञान लेता है।

*पर्वतीय पारिस्थितिकी तन्त्र की रक्षा*

• इस विश्व सम्मेलन में आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए पारिस्थितिकी दृष्टिकोण के साथ हिमालयी क्षेत्र के लिए अनुकूल प्रकृति आधारित समाधानों/प्रकृति जलवायु समाधानों के क्रियान्वयन पर विशेष बल देने का प्रस्ताव है।

• स्थानीय समुदायों के अनुभवों की विशिष्टता की पहचान, उसकी मान्यता एवं सराहना, तथा आपदाओं और उनके समाधानों की बेहतर समझ के लिए समकालीन प्रौद्योगिकियों एवं भविष्यवाणी के उपकरणों के साथ-साथ स्थानीय ज्ञान-प्रणालियों का सन्दर्भ एवं समावेश भी आवश्यक है। ढाँचागत विकास और परियोजनाओं के लिए हिमालयी तन्त्र की भूवैज्ञानिक, जल- वैज्ञानिक, पारिस्थितिकी, और सामाजिक जटिलताओं को समझने के लिए विभिन्न संस्थानों के मध्य डेटा /सूचना की साझेदारी परियोजना सुनिश्चित करना आवश्यक होगा।

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