*💐गोयनका परिवार ने श्री राधेश्याम गोयनका जी और श्रीमती सरोज गोयनका जी की 60 वीं वर्षगांठ बड़े ही सात्विक व आध्यात्मिक वातावरण में महाग्रंथ रामायण के प्रसंगों के साथ मनायी*
*✨कलकता में आयोजित कार्यक्रम में श्री कुमार विश्वास जी ने भगवान श्रीराम व रामायण के प्रसंगों पर आधारित अपने-अपने राम कार्यक्रम से मोह लिया सभी का दिल*
*💥गोयनका दम्पति को हिमालय की हरित भेंट रूद्राक्ष का पौधा आशीर्वाद स्वरूप भेंट किया*
*💥गोयनका परिवार के बीच कलकता में प्रिय कुमार विश्वास जी की ’अपने-अपने राम’ की अद्भुत, अलौकिक और विलक्षण प्रस्तुति*
ऋषिकेश, 28 जून। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कलकता में आयोजित श्री राधेश्याम गोयनका जी और श्रीमती सरोज गोयनका जी की 60 वीं वर्षगांठ के अवसर पर विशेष रूप से सहभाग कर पूरे परिवार को संस्कार, संस्कृति व एकता के साथ रहने का मंत्र दिया।
स्वामी जी ने कहा कि यह है भारत की संस्कृति जहां पर विवाह के 60 वर्षों के बाद भी वही साथी, वही साथ और फिर भी हनीमून मना सकते हैं, यही है भारतीय संस्कारों की विशेषता। यदि जीवन में; परिवार में संस्कार होते हैं तो रिश्ते फिर किस्तों में नहीं होते हैं न ही मतलब के होते हैं बल्कि मस्ती भरे होते हैं जो जीवन को भी मस्त कर देते हैं; प्रसन्नता से भर देते हैं। जहां पर 60 वर्षों के बाद भी हनी भी और मून भी उसी तरह जीवंत व जागृत होता है और रिश्ते प्रेममय होते हैं।
स्वामी जी ने कहा कि गोयनका परिवार ने दिखा दिया कि वैवाहिक वर्षगांठ भी किस प्रकार संस्कारमय; आदर्शमय और दिव्यता से युक्त मनायी जा सकती हैं। अपनी संस्कृति के संरक्षण का यह उत्कृष्ट उदाहरण है। गोयनका परिवार की साथ-साथ रह रही तीन पीढ़ियां और आगे आने वाली पीढ़ियों के लिये यह प्रेरणा है। गोयनका जी की 60 वीं वर्षगांठ उनकी वर्तमान पीढ़ी व आगे आने वाली पीढ़ियों के लिये प्रेरित होने व अनुप्राणित होने का दिव्य अवसर है।
स्वामी जी ने कहा कि परिवार एक वट वृक्ष की तरह है। जिस प्रकार वटवृक्ष की अनेक शाखायें होती हैं परन्तु शाखायें तब तक ही हरी-भरी रहती है जब तक जड़ें स्वस्थ और मजबूत होती है। अगर जड़ों में किसी प्रकार की परेशानी होती हैं तो शाखायें अपने आप सूखने लगती है। परिवार भी बिल्कुल वृक्ष की तरह ही हैं अगर जड़ें संस्कारों व संस्कृति से युक्त हो और समय-समय पर संस्कारों का पोषण मिलता रहें हो पूरा परिवार हरा-भरा होगा इसलिये छोटे-छोटे टुकड़ों के लिये परिवार के टुकडे न होने दें। बड़े-बड़े घर, भवन, गाड़ी और बंगले बने लेकिन जीवन भी बढ़िया बने यह बहुत जरूरी है और यह केवल और केवल संस्कारों के बल पर हो सकता है; केवल समृद्धि के बल पर नहीं बल्कि संस्कृति के बल पर ही हो सकता है। भारत आज तक संस्कृति व संस्कारों के बल पर ही खड़ा हुआ है। सदियों तक भारत पर आक्रमण हुये, अनेक आक्रमणकारी आयें परन्तु भारत ने सब का सामना किया और आज भी भारत अपने संस्कारों व संस्कारों से युक्त परिवारों के बल पर खड़ा हैं।
स्वामी जी ने कहा कि पीआर से बड़ा-बड़ा व्यापार खड़ा किया जा सकता है लेकिन परिवार नहीं। परिवार तो केवल प्यार के बल पर ही खड़ा किया जा सकता है। परिवार पीआर से नहीं प्यार से खड़ा होता हैं, बड़ा होता हैं और आगे बढ़ता हैं। उन्होंने कहा कि गोयनका परिवार की एक पीढ़ी ने संस्कारों से युक्त वैवाहिक वर्षगांठ मनाकर अपनी संस्कृति व संस्कारों के संरक्षण का संदेश दिया और दूसरी पीढ़ी ने शोरशराबे से दूर प्रसिद्ध कवि कुमार विश्वास के अपने-अपने राम कार्यक्रम का आयोजन कर एक अद्भुत संदेश दिया।
आज एक अद्भुत व अभूतपूर्व भामाशाह की जयंती पर भावभीनी श्रद्धाजंलि अर्पित करते हुये कहा कि राजस्थान की धरती से आकर भामाशाह ने पूरे भारत में अनेक मन्दिरों, उद्योगों का निर्माण किया।
भामाशाह की जयंती पर स्वामी ने कहा कि राजस्थान की धरती से आकर श्री राधेश्याम गोयनका जी ने अपने मित्र श्री राधेश्याम जी अग्रवाल के साथ मिलकर बालासोर में भगवान जगन्नाथ जी के मन्दिर का निर्माण कराया, जो वास्तव में अद्भुत है और उनका निर्माण भी ऐसे कराया कि वह एक हजार से भी अधिक वर्षों तक जैसे का वैसा रह सके और कलकता का सिद्धि विनायक मन्दिर तो अद्भुत, अलौकिक व दिव्य हैं। वे केवल उद्योगपति नहीं बने बल्कि दूसरों को सहयोग करते हुये उद्योगी के साथ सहयोगी भी बने और समाज को खड़ा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। संस्कार और संस्कृति को जीवंत व जागृत रखने हेतु अनेक शुभ कार्य करने वाले गोयनका परिवार को स्वामी जी ने रूद्राक्ष का दिव्य पौधा भेंट कर उनका अभिनन्दन किया।
स्वामी जी ने कहा कि दान व दानवीरों की चर्चा होते ही भामाशाह का नाम सब से पहले आता हैं। देश रक्षा के लिए महाराणा प्रताप के चरणों में अपनी सब जमा पूँजी अर्पित करने वाले दानवीर भामाशाह देशभक्ति का उद्भुत संदेश दिया।
दानवीर भामाशाह ने महाराणा प्रताप को धन की मदद करने के लिये के स्वयं का तथा पुरखों का कमाया हुआ अपार धन उनके चरणों में अर्पित करते हुये कहा कि यह सब धन मैंने देश से ही कमाया है। यदि यह देश की रक्षा में लग जाये, तो यह मेरा और मेरे परिवार का अहोभाग्य ही होगा। स्वामी जी ने कहा कि ये है भारत की माटी जिसने महाराणा प्रताप जैसे अद्म्य साहसी मातृभूमि के रक्षक और भामाशाह जैसे दानवीरों को जन्म दिया।
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