*** ईसाई बने नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री प्रचंड, के.पी. शर्मा ओली और शेर बहादुर देउबा का हिंदू मंदिरों में प्रवेश वर्जित
हरिद्वार। उदासीन मिशन के संस्थापक महंत रामदास ने कहा
ईसाई मिशनरी के द्वारा हिंदुओं को निशाना बनाया जा रहा है। कमजोर वर्ग के लोगों को प्रलोभन देकर धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है। जल्दी इस पर रोक नहीं लगाई गई तो वह दिन दूर नहीं जब हिंदू समाज के लोग अपने ही घर में अल्पसंख्यक हो जाएंगे। नेपाल इसका जीता जागता उदाहरण है। जहां पूर्व प्रधानमंत्री प्रचंड, केपी शर्मा, ओली, शेर बहादुर देउबा ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया। ऐसे लोगों को भारत के किसी मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
प्रेस को जारी बयान में महंत स्वामी रामदास ने कहा कि वर्ष 2006 में राजशाही को समाप्त करने के बाद नेपाल धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र हो गया, लेकिन वहां का संविधान अभी भी हिंदू धर्म और संस्कृति को बढ़ावा देता है। वर्तमान स्थिति और प्रथाएं आज, हिंदू धर्म प्रमुख बना हुआ है। काठमांडू में पशुपतिनाथ मंदिर जैसे प्रमुख स्थल, जो शिव को समर्पित एक यूनेस्को स्थल है। वहीं रामायण में सीता का जन्मस्थान जनकपुर, धार्मिक जीवन का केंद्र है। ऐसे में हम विभिन्न संप्रदायों के सभी धार्मिक प्रमुखों और मंदिर ट्रस्टियों से अपील करते हैं कि वें प्रचंड, के.पी. शर्मा ओली और शेर बहादुर देबुआ के भारत के किसी भी हिंदू मंदिर या आश्रम में प्रवेश पर प्रतिबंध लगाएं। महंत स्वामी रामदास ने कहा कि यूरोपियन और अमेरिकी ईसाई संगठनों ने हमेशा अपने एनजीओ या जिन एनजीओ को वे वित्तपोषित करते हैं उनके माध्यम से स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने की रणनीति बनाई है। वे भी विभिन्न इलाकों में स्कूल खोलते हैं। इन दो स्रोतों का उपयोग ईसाई धर्म और धार्मिक रूपांतरण के प्रचार के लिए किया जा रहा है। ज्यादातर वे हिंदू आबादी वाले क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करते हैं। जब वें किसी क्षेत्र को लक्षित करते हैं तो वे किसी भी हद तक जा सकते हैं। नेपाल इसका जीता जागता उदाहरण है। मां सीता की जन्मभूमि और भगवान पशुपतिनाथ की भूमि नेपाल में बहुसंख्यक लोग भगवान शिव और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। ऐसा माना जाता है कि नेपाल के राजा भगवान विष्णु के अवतार हैं और उनके पीठासीन देवता भगवान पशुपतिनाथ हैं। अधिकांश सिद्ध संत कहते हैं कि भगवान शिव और विष्णु में कोई अंतर नहीं है- निस्संदेह यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण उच्च दर्शन है जिसे केवल महसूस किया जा सकता है। ऐसा उच्च दार्शनिक विचार केवल नेपाल में ही देखने को मिलता है। लेकिन इस छोटी सी हिमालय घाटी को ईसाई संगठनों ने निशाना बनाया और राजशाही को उखाड़ फेंकने के लिए माओवादी क्रांति को बढ़ावा दिया और वे सफल भी हुए। माओवादी क्रांति के कारण नेपाल की आर्थिक स्थिति खराब हो गई। जब नेपाल एक लोकतांत्रिक देश बन गया तो ईसाई संगठनों ने हिंदू लोगों को निशाना बनाया और उन्हें ईसाई धर्म में परिवर्तित कर दिया। ईसाई संगठनों का लक्ष्य आदिवासी और निम्न आय वर्ग के लोग थे, उन्होंने उन्हें पैसे और अपने एनजीओ में नौकरी देने का लालच दिया। उन्होंने कहा कि भूखा व्यक्ति कोई भी पाप कर सकता है। दिलचस्प बात यह है कि न केवल पूर्व प्रधानमंत्री प्रचंड, बल्कि दो अन्य पूर्व प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली और शेर बहादुर देउबा ने भी ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया है। सूत्रों की मानें तो इन तीनों लोगों ने न केवल ईसाई धर्म स्वीकार किया है, बल्कि पवित्र मदिरा भी पी है।
स्वामी रामदास ने कहा एक मोड़ आया है जब हिंदू लोगों को एहसास हुआ है कि अगर स्थिति (ईसाई धर्म में धर्मांतरण) इसी तरह जारी रही तो एक दिन हिंदू लोग अपनी ही हिंदू भूमि में अल्पसंख्यक समुदाय बन जाएंगे। स्वामी रामदास ने कहा कि 18वीं शताब्दी तक, पृथ्वी नारायण शाह जैसे शासकों ने राष्ट्र को एकीकृत किया और हिंदू पहचान पर जोर देते हुए इसे “असल हिंदुस्तान” के रूप में प्रचारित किया। यह 1854 में मुलुकी ऐन जैसे कानूनी कोड के साथ जारी रहा, जिसने हिंदू कानूनों को संहिताबद्ध किया।
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