*💥वीरता, बलिदान और राष्ट्रभक्ति के प्रतीक छत्रपति संभाजी महाराज की जयंती पर शत्-शत् नमन*
*🌸परमार्थ निकेतन में वेदांत व योग का प्रशिक्षण*
*✨स्वामी जी के पावन सान्निध्य में योग जिज्ञासुओं ने छत्रपति संभाजी महाराज को अर्पित की श्रद्धाजंलि*
ऋषिकेश। छत्रपति संभाजी महाराज का जीवन साहस, निष्ठा, और अदम्य राष्ट्रभक्ति की जीवंत गाथा है। उनकी जयंती पर परमार्थ निकेतन से भावभीनी श्रद्धाजंलि अर्पित की। आज का ऐतिहासिक अवसर वर्तमान पीढ़ी को समर्पण, संघर्ष और आत्मबलिदान का दिव्य संदेश देता है।
छत्रपति शिवाजी महाराज के सुपुत्र और हिन्दवी स्वराज्य के उत्तराधिकारी संभाजी महाराज एक पराक्रमी योद्धा थे, एक उत्कृष्ट लेखक, कुशल रणनीतिकार और संवेदनशील शासक भी थे। वे धर्म की रक्षा के लिए अंत तक अडिग रहे। जब उन्हें बंदी बनाया गया, तब भी उन्होंने इस्लाम स्वीकार करने के मुगल प्रस्ताव को अस्वीकार करते हुए अपार यातनाएं झेलीं, परंतु अपने धर्म और राष्ट्र के प्रति निष्ठा से विचलित नहीं हुए।
उनकी शहादत भारतीय इतिहास की सबसे हृदयविदारक और प्रेरक घटनाओं में से एक है। संभाजी महाराज जी की मृत्यु एक वीर की मृत्यु के साथ वह हिन्दू स्वाभिमान की पुनः स्थापना का दीप बन गई, जिसने संपूर्ण राष्ट्र को जागृत किया।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने छत्रपति संभाजी महाराज को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुये कहा कि छत्रपति संभाजी महाराज की जीवनगाथा हमें यह सिखाती है कि राष्ट्रधर्म सर्वोपरि है। उन्होंने अत्याचार के समक्ष कभी सिर नहीं झुकाया। उनका त्याग, तप और तेज आज भी प्रत्येक भारतवासी के हृदय में चेतना का दीप प्रज्वलित करता है। हम सबको चाहिए कि उनके जीवन से प्रेरणा लेकर अपने जीवन में राष्ट्र और संस्कृति की सेवा को प्राथमिकता दें।
जब भौतिकता, सुविधा और स्वार्थ की प्रवृत्तियाँ बढ़ रही हैं, ऐसे समय में संभाजी महाराज जैसा आदर्श हमें यह याद दिलाता है कि जीवन केवल अपने लिए नहीं, बल्कि समाज, संस्कृति और देश के लिए समर्पित होना चाहिए। उनके अदम्य साहस और त्याग से यह संदेश स्पष्ट होता है कि सच्चा लीडर वह है जो न सिर्फ शासन करता है, बल्कि अपने लोगों के लिए जीता और बलिदान देता है।
आज आवश्यकता है कि हम संभाजी महाराज के आदर्शों को केवल पुस्तकों तक सीमित न रखें, बल्कि उन्हें अपने विचार, व्यवहार और कार्य में आत्मसात करें। छत्रपति संभाजी महाराज केवल मराठा साम्राज्य के राजा ही नहीं थे, वे भारत माता के वीर सपूत भी थे, जिनकी जयंती को हम राष्ट्रीय चेतना के पुनर्जागरण के रूप में मना सकते हैं।
हम राष्ट्रधर्म को ही अपना परम धर्म मानेंगे और सत्य, साहस, सेवा तथा संस्कार के पथ पर चलकर भारत को फिर से विश्वगुरु बनाने में अपना योगदान प्रदान करेंगे।
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