May 20, 2025

श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव, राष्ट्रीय स्वयंसेवक के वरिष्ठ प्रचारक श्री चंपत राय जी का परमार्थ निकेतन में आगमन

*💥श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव, राष्ट्रीय स्वयंसेवक के वरिष्ठ प्रचारक श्री चंपत राय जी का परमार्थ निकेतन में आगमन*
*✨हिंदू एकता, सांस्कृतिक पुनर्जागरण, और मंदिरों के पुनर्निर्माण के पक्षधर*
*🌺श्री चंपत राय जी राम मंदिर आंदोलन के महानायक और “रामकाज में रत एक कर्मयोगी”*
*💐श्री राम मन्दिर तीर्थ क्षेत्र अयोध्या एक युगानुकूल तीर्थ*
*💥परमार्थ निकेतन में पूज्य संतों और स्वच्छताकर्मियों को भंडारा कराया*
*💥संत, हृदय को स्वच्छ करते हैं और स्वच्छता कर्मी सड़कों को स्वच्छ करते हैं*
ऋषिकेश, 19 मई। परमार्थ निकेतन हो रही 34 दिवसीय श्रीराम कथा में आज राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव, श्री चंपत राय जी का आगमन हुआ।
संत श्री मुरलीधर जी के पावन मुख से हो रही श्रीराम कथा में आज स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और श्री चंपत राज जी का पावन सान्निध्य, उद्बोधन व आशीर्वाद प्राप्त हुआ। श्रीराम कथा, निरंतर धर्म, भक्ति और संस्कृति का अलख जगा रही है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा, श्री चंपत राय जी वास्तव में ‘रामकाज में रत एक कर्मयोगी’ हैं। राम काज कीन्हें बिनु, मोहि कहां विश्राम यह ही उनका मंत्र है। वे वर्षों से राष्ट्र, धर्म और संस्कृति के संरक्षण हेतु समर्पित भाव से कार्यरत हैं।
स्वामी जी ने कहा कि श्रीराम जी का जीवन केवल एक दिव्य कथा नहीं, बल्कि मानव जीवन के हर पक्ष को दिशा देने वाली एक जीवंत पाठशाला है। उनका चरित्र किसी पुस्तक के पृष्ठों में सिमटी हुई कोई कहानी नहीं, बल्कि ऐसा प्रकाशस्तंभ है जो हर युग में हर पीढ़ी को नैतिकता, मर्यादा और कर्तव्य का मार्ग दिखाता है।
उनके जीवन की इस पाठशाला में सेवा है, समर्पण है, त्याग है, सत्य है और धर्म का अद्भुत संतुलन है। श्रीराम ने जीवन के हर रिश्ते को पूरी निष्ठा और उत्तरदायित्व से निभाया। उन्होंने पिता के वचन की रक्षा के लिए राज्य और वैभव का त्याग किया, भाई के प्रति प्रेम और सम्मान की उच्चतम सीमा तय की, और एक राजा होकर भी शबरी, निषाद और वनवासियों से आत्मीय संबंध जोड़े।
श्री राम जी के जीवन की सबसे बड़ी शिक्षा यह है कि कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी मर्यादा नहीं छोड़नी चाहिए।

श्री चंपत राय जी ने श्रीराम कथा में अपने उद्बोधन में कहा, श्री राम मन्दिर भगवान के जन्मस्थान का मन्दिर है। 500 वर्षों के इतंजार और 40 वर्षों तक पूज्य संतों के अखंड रूप से चलकर जागरण करने का परिणाम है। श्रीराम मन्दिर में विराजमान प्रतिमा 5 वर्ष के भगवान की प्रतिमा है। मन्दिर रचना में यह ध्यान रखा गया है कि यह मन्दिर 1000 वर्षों तक कैसे ठीक रहेगा इन सब पर विचार किया गया। प्रकृति के सारे आक्रमणों को कैसे सहेगा यह सब सोच कर ही श्रीराम मन्दिर बनाया गया है। यह एक ऐसा मन्दिर है जो विगत 1000 वर्षों में उत्तर भारत में ऐसा कोई मन्दिर नहीं बना है। श्रीराम मन्दिर में आदिगुरू शंकराचार्य जी की पंचायतन की कल्पना हो साकार किया गया है।
उन्होंने कहा कि श्री राम जी का कार्य केवल मंदिर निर्माण तक सीमित नहीं है। यह जन-जन में मर्यादा, सेवा और धर्म के मूल्यों को स्थापित करने का प्रयास है। अयोध्या में राम मंदिर, राष्ट्र के आत्मसम्मान का प्रतीक है लेकिन हमें अपने भीतर भी रामराज्य लाना है जहां प्रेम हो, सत्य हो और समर्पण हो।
उन्होंने कहा कि श्रीराम कथा में भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण की शक्ति है। कथा में आने वाले हर व्यक्ति के हृदय में अगर श्रीराम जी का मूल संदेश उतर जाए, तो यह भारत भूमि पुनः रामराज्य बन सकती है।
संत श्री मुरलीधर जी ने कहा कि श्रीरामकथा का सार जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाना है। रामकथा आज के समय में सांस्कृतिक पुनर्जागरण की एक सशक्त धारा है, जो युवाओं को नैतिकता और आध्यात्म की ओर लौटाती है। श्रीराम नाम ही हमारा जीवन मंत्र है।
परमार्थ निकेतन में आज कथा स्थल पर हर ओर श्रीराम नाम की ध्वनि और भारतीय संस्कृति की जीवंतता दिखाई दी। स्वामी जी ने श्री चंपतराज जी और विशिष्ट अतिथियों को हिमालय की हरित भेंट रूद्राक्ष का पौधा किया भेंट।
इस अवसर पर श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सदस्य और राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा समारोह के मुख्य यजमान श्री अनिल मिश्रा जी और विशिष्ट अतिथि उपस्थित रहे।