*🌸विश्व सांस्कृतिक विविधता दिवस एकता में अनेकता का अलौकिक उत्सव*
*🌺सांस्कृतिक विविधता स्वयं प्रकृति की एक सुन्दर रचना*
*✨युवाओं के दल स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने विविधता में एकता के साथ एकता में अनेकताओं को भी स्वीकार करने का दिया संदेश*
*✨सांस्कृतिक विविधता कोई दीवार नहीं, कोई दूरी नहीं वह तो एक पुल है, जो हृदयों को जोड़ता है*
*🙏🏾स्वामी चिदानन्द सरस्वती*
ऋषिकेश, 21 मई। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने विश्व सांस्कृतिक विविधता दिवस के अवसर पर कहा कि भारतवर्ष तो स्वयं इस सजीव विविधता का उत्सव है।
परमार्थ निकेेतन में पूज्य संतों के साथ आये युवाओं के दल स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने विविधता में एकता के साथ एकता में अनेकताओं को भी स्वीकार करने का संदेश दिया।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि यह दिन हमारी विविधताओं का उत्सव है, साथ ही यह दिन हमें मानवता के उन अदृश्य धागे का स्मरण है, जो हमें एक-दूसरे से जोड़ता है, हमारी संस्कृति, हमारी परंपराएं, हमारी आस्थाएं और हमारे जीवन के रंग को भी एक दूसरे से जोड़ता है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि भले ही हमारी वेशभूषा, भाषा, भोजन और बोलियाँ भिन्न हों, लेकिन हमारे हृदय की धड़कनें एक जैसी हैं, प्रेम, करुणा और सह-अस्तित्व से भरी हुई है।
सांस्कृतिक विविधता स्वयं प्रकृति की एक सुन्दर रचना है जिसमें स्वयं ईश्वर ने रंगों, रसों और भावों की बहुरंगी छटा बिखेरी है। जैसे एक उपवन में विविध पुष्प अपनी-अपनी सुगंध और रंगों के साथ सौंदर्य को संपूर्ण बनाते हैं, वैसे ही विविध संस्कृतियाँ मिलकर एक दिव्य समाज की सृष्टि करती हैं, एक ऐसा समाज जो न केवल सहनशील होता है, बल्कि आत्मीय भी हो।
स्वामी जी ने कहा कि भारतवर्ष तो स्वयं इस सजीव विविधता का आलंबन है। यहाँ कश्मीर की बर्फीली वादियों से लेकर कन्याकुमारी के लहराते समुद्र तक, कच्छ की धूल से लेकर अरुणाचल के सूर्योदय तक हर दिशा, हर कोना, एक नई संस्कृति, एक नई कथा कहता है। फिर भी, इन सबके बीच एक अदृश्य धारा बहती है, एक संस्कृति, एक आत्मा, एक सनातन भाव जो हमें एक सूत्र में पिरोए रखती है। यही भारत की आत्मा है, और यही विश्व सांस्कृतिक विविधता दिवस का वास्तविक संदेश भी है।
हमारे शास्त्रों में कहा गया है वसुधैव कुटुम्बकम, अर्थात् सम्पूर्ण पृथ्वी ही हमारा परिवार है। जब हम विविधताओं का स्वागत करते हैं, तब हम इस वैश्विक परिवार की आत्मा को सम्मान देते हैं। जब हम दूसरों की परंपराओं में सुंदरता ढूँढते हैं, तब हम स्वयं के हृदय को बड़ा बनाते हैं।
सांस्कृतिक विविधता कोई दीवार नहीं, कोई दूरी नहीं वह तो एक पुल है, जो हृदयों को जोड़ता है। वह एक आइना है, जिसमें हम अपनी पहचान के साथ-साथ दूसरों की भी छवि देख सकते हैं। यह विविधता कोई चुनौती नहीं, बल्कि एक वरदान है ऐसा वरदान जो हमें समृद्ध बनाता है, हमारी सोच को विस्तारित करता है। यही भारत भूमि का संदेश है, यही सनातन संस्कृति की पुकार है, और यही मानवता का मार्ग भी है।
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