May 30, 2025

मासिक श्रीराम कथा के दिव्य मंच से मासिक धर्म पर स्वच्छता, सम्मान और संवाद का संदेश

*💥मासिक श्रीराम कथा के दिव्य मंच से मासिक धर्म पर स्वच्छता, सम्मान और संवाद का संदेश*

*🌺स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी का आह्वान -मासिक धर्म शर्म का नहीं, सृजन का विषय*

*🌸देवी स्वस्थ तो देश स्वस्थ*

*🔥मासिक धर्म पर चुप्पी नहीं चर्चा*

*🙏🏾स्वामी चिदानन्द सरस्वती*

ऋषिकेश, 28 मई। परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश में चल रही मासिक श्रीराम कथा के दिव्य और गरिमामय मंच से परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने एक अनूठा और समाज को झकझोरने वाला संदेश दिया गया। उन्होंने मासिक श्रीराम कथा के पावन अवसर पर सभी उपस्थित श्रद्धालुओं, माताओं, बहनों और युवाओं का आह्वान करते हुए कहा कि मासिक धर्म शर्म का नहीं, सृजन का विषय है। यह नारी के भीतर छुपी प्रकृति की रचनात्मक शक्ति का प्रतीक है।

स्वामी जी ने कहा कि जहां श्रीराम कथा के माध्यम से हम मर्यादा, सेवा, प्रेम और समर्पण का पाठ पढ़ते हैं, वहीं आज विश्व मासिक धर्म स्वच्छता दिवस के अवसर पर इस मंच से हमें समाज में व्याप्त मासिक धर्म से जुड़ी चुप्पी, संकोच और भ्रम को तोड़ने का भी संकल्प लेना होगा। उन्होंने कहा कि जैसे भगवान श्रीराम ने समाज को मर्यादा का मार्ग दिखाया, वैसे ही हमें भी अब मासिक धर्म जैसे आवश्यक विषयों पर खुलकर, गरिमा के साथ चर्चा करनी होगी।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि आज भी हमारे देश के कई हिस्सों में मासिक धर्म को लेकर सामाजिक वर्जनाएं हैं। इसके कारण कई स्थानों पर बेटियों को स्कूल जाना भी छोड़ना पड़ता है, कई परिवारों में उन्हें अलग कमरे में बैठा दिया जाता है, और इस विषय पर बातचीत करना अशोभनीय समझा जाता है। यह सोच न केवल नारी शक्ति का अपमान है, बल्कि स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे उनके मूलभूत अधिकारों का हनन भी है।

स्वामी जी ने कहा कि धर्म का उद्देश्य है जागरूकता, करुणा और समरसता है। यदि मासिक धर्म के विषय पर चुप्पी समाज को पीड़ा दे रही है, तो धर्म की जिम्मेदारी है कि वह समाज को इस पीड़ा से मुक्त करे। उन्होंने श्रीराम कथा के मंच से सभी धर्मगुरुओं, शिक्षकों, अभिभावकों और युवाओं से आग्रह व आह्वान करते हुये कहा कि वे मासिक धर्म को लेकर खुली, संवेदनशील और सम्मानजनक चर्चा को बढ़ावा दें।

श्रीराम कथा व परमार्थ निकेतन आने वाले बालिकाओं के ग्रुप से स्वामी जी ने माहवारी के विषय में चर्चा की। इस चर्चा में भाग लेने वाली बालिकायें व मातायें भावुक हो उठीं और कहा कि पहली बार किसी धार्मिक मंच से उन्हें इतनी गरिमा और संवेदना के साथ सुना गया।

स्वामी जी ने अपने संबोधन में एक मार्मिक प्रश्न उठाया कि जब नवरात्रि में हम कन्याओं के चरण धोते हैं, और उसी कन्या की महावारी को हम अशुद्ध कैसे कह सकते हैं? यह वाक्य पूरे पंडाल में मौन और विचार की लहर ले आया। उन्होंने कहा कि मासिक धर्म कोई बीमारी नहीं, यह नारी की जैविक प्रक्रिया है, जो संतान सृजन के लिए आवश्यक है। इसे छुपाना नहीं, समझाना होगा, इसे अपवित्र नहीं, पवित्र दृष्टि से देखना होगा।

स्वामी जी ने विशेष रूप से युवाओं से आग्रह किया कि सोशल मीडिया का प्रयोग सिर्फ ट्रेंडिंग हैशटैग्स के लिए नहीं, बल्कि ऐसे जागरूकता अभियानों के लिए करें जो समाज को शिक्षित करें।

स्वामी जी ने सभी को संकल्प कराया कि हम सभी मासिक धर्म के विषय में चुप नहीं रहेंगे। अपनी बेटियों, बहनों और छात्राओं को स्वच्छता, जानकारी और गरिमा से युक्त जीवन देने का प्रयास करेंगे।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी का यह भी संदेश दिया है कि आज के भारत के लिए अत्यंत प्रासंगिक है, जहाँ एक ओर हम चंद्रमा पर पहुंच रहे हैं, वहीं दूसरी ओर हमारी बेटियाँ मासिक धर्म के कारण स्कूल से वंचित हो रही हैं। अब समय है कि धर्म, विज्ञान और समाज साथ आएं और नारी शक्ति को उसकी संपूर्ण गरिमा और स्वास्थ्य का अधिकार दिलाएँ।