August 17, 2025

उत्तराखंड के लोकपर्व घी संक्रांति घ्यू त्यार की मेरे प्यारे प्रदेश वासियों को शुभकामनायें

*✨उत्तराखंड के लोकपर्व घी संक्रांति घ्यू त्यार की मेरे प्यारे प्रदेश वासियों को शुभकामनायें*

*🌸घी संक्रांति पर्व हमारी लोकसंस्कृति, परंपरा और पर्वतीय जीवनशैली का प्रतीक*

*💫घी संक्रांति, उत्तराखण्ड का दिव्य उत्सव*

*🙏🏾स्वामी चिदानन्द सरस्वती*

ऋषिकेश, 17 अगस्त। देवभूमि उत्तराखण्ड की पहचान उसकी प्राकृतिक सुंदरता, अध्यात्म व दिव्यता के साथ उसकी समृद्ध लोकसंस्कृति और पर्वों से भी है। यहाँ मनाए जाने वाले हर त्योहार में प्रकृति, समाज और जीवन मूल्यों की गहरी झलक समाहित है। इन्हीं पर्वों में से एक है घी संक्रांति (घ्यू त्यार, ओल्गिया)। यह पर्व पीढ़ियों से चली आ रही सामाजिक परंपरा और सांस्कृतिक गौरव का उत्सव है।

लोकपर्व घी संक्रांति का संबंध हमारी भूमि, अन्न और पशुधन से है। भाद्रपद संक्रांति के दिन मनाया जाने वाला यह पर्व किसान और पशुपालक जीवन की मेहनत का सम्मान है। आज का दिन ताजे अन्न, घी, दूध और स्थानीय खाद्य पदार्थों का उत्सव हैं। ये न केवल स्वादिष्ट बल्कि स्वास्थ्यवर्धक भी होते हैं, जो हमें हमारी जड़ों से जोड़ते हैं।

यह पर्व सामाजिक और पारिवारिक बंधनों को भी मजबूत करता है। रिश्तों में आत्मीयता, समाज में एकता और जीवन में संतुलन का संदेश भी यह पर्व देता है। पर्वतीय समाज में यह दिन मेल-जोल, आपसी सहयोग और खुशियाँ बाँटने का अवसर है।

आज जब आधुनिक जीवनशैली में लोग अपनी जड़ों से दूर होते जा रहे हैं, ऐसे में घी संक्रांति जैसे पर्व हमें अपनी पहचान और परंपराओं से जोड़ते हैं। यह हमें याद दिलाते हैं कि हमारी संस्कृति कितनी समृद्ध और जीवन्त है। यह पर्व युवाओं को अपनी लोकसंस्कृति पर गर्व करने और उसे आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाने की प्रेरणा देता है।

उत्तराखण्ड का जीवन प्रकृति से गहराई से जुड़ा हुआ है। यहां की संस्कृति, लोकगीत, त्योहार और परंपराएँ सभी कहीं न कहीं कृषि और पशुपालन से जुड़ी रही हैं। घी संक्रांति इस तथ्य को और अधिक उजागर करती है कि हमारी समृद्ध परंपराएँ हमें आत्मनिर्भरता, परिश्रम, सहयोग और कृतज्ञता का संदेश देती हैं।

 

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि यह पर्व पर्वतीय जीवन की कठोर परिस्थितियों में भी खुशी, उल्लास और एकता का प्रतीक है। जब लोग अपनी मेहनत की फसल का पहला अंश अपने प्रियजनों और समाज के साथ साझा करते हैं, तो यह न केवल उनके आत्मिक आनंद को बढ़ाता है बल्कि सामाजिक बंधनों को भी सुदृढ़ करता है।

हमारी पर्वतीय जीवनशैली हमें आत्मनिर्भरता, सादगी और परिश्रम का संदेश देती है। यही हमारी असली ताकत है। पर्वों के माध्यम से हमें यही सीख लेनी चाहिए कि चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों, अगर हम एकजुट रहेंगे तो कोई भी कठिनाई हमें पराजित नहीं कर सकती।

देवभूमि उत्तराखण्ड का यह लोकपर्व घी संक्रांति सभी के जीवन में सुख, शांति, समृद्धि और नई ऊर्जा लेकर आए। यह पर्व हमें अपनी परंपराओं पर गर्व करने और उन्हें नई पीढ़ियों तक पहुँचाने की प्रेरणा देता है।