September 19, 2025

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी, श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार जी के 133 वें जयंती महोत्सव में विशेष रूप से आंमत्रित


*✨श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार स्मारक समिति द्वारा गीतावाटिका, गोरखपुर में युगद्रष्टा महामानव भाईजी श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार का 133 वां जयंती कार्यक्रम का आयोजन*
*💐परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी, महासचिव, श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र, अयोध्या, श्री चंपतराय जी, कथावाचक श्री नरहरि दास जी, राष्ट्रीय संगठन सचिव, अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना, नई दिल्ली, डा बालमुकुन्द जी पाण्डेय, निदेशक, शोध एवं प्रशासन, भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली, डा ओम जी उपाध्याय जी, हेड नेशनल कैंसर इन्टीट्यूट, एम्स नई दिल्ली, प्रो डा जी के रथ जी और विशिष्ट विभूतियों का पावन सान्निध्य, मार्गदर्शन व उद्बोधन*
*💥स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी, महाराज ने श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार जी के 133 वें जयंती महोत्सव की अध्यक्षता*

*💫गीता प्रेस ने कभी भी लाभ को लक्ष्य नहीं बनाया, बल्कि सेवा और संस्कार को ही अपनी धरोहर माना*
*🌸गीता प्रेस, संस्कृति का दीपस्तंभ*
*🙏🏾स्वामी चिदानन्द सरस्वती*

गोरखपुर, ऋषिकेश, 18 सितम्बर। भारतीय संस्कृति के पुरोधा, महान साहित्यकार, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं कल्याण पत्रिका के संस्थापक संपादक, श्रद्धेय भाईजी श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार जी की 133वीं जयंती महोत्सव के पावन अवसर पर गोरखपुर स्थित गीतावाटिका में भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य है भाईजी के अविस्मरणीय योगदान, उनकी आध्यात्मिक साधना, राष्ट्र एवं संस्कृति के प्रति उनकी अमूल्य सेवाओं को स्मरण करना तथा भावी पीढ़ियों को प्रेरणा देना है।
परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश के अध्यक्ष, स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी, महाराज ने इस कार्यक्रम की अध्यक्षता की। इस अवसर पर श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र, अयोध्या के महासचिव श्री चंपतराय जी, कथावाचक श्री नरहरि दास जी, डा. बालमुकुन्द पाण्डेय जी, डा. ओम जी उपाध्याय जी, प्रो. डा. जी.के. रथ जी सहित अनेक विद्वान, संत और विभूतियाँ उपस्थित रहीं और भाईजी के जीवन पर प्रकाश डाला।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने श्री भाई जी को श्रद्धाजंलि अर्पित करते हुये कहा कि 1918 में स्थापित गीता प्रेस, गोरखपुर ने भाईजी की करुणा और समर्पण से एक ऐसी सेवा परंपरा आरंभ की जिसने भारतीय समाज को नई चेतना प्रदान की। करोड़ों प्रतियों में प्रकाशित गीता, रामचरितमानस, उपनिषद, पुराण और अन्य ग्रंथों ने न केवल भारत में, बल्कि विश्वभर में सनातन संस्कृति का अमृत पहुँचाया। यह केवल एक प्रकाशन संस्थान नहीं बल्कि एक संस्कार यज्ञ है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी समाज को धर्म, मूल्य और आचरण की शिक्षा देता रहा है।

स्वामी जी ने कहा कि भाईजी द्वारा संपादित मासिक पत्रिका ‘कल्याण’ भारतीय परिवारों के लिए संस्कृति की जीवनरेखा बन गई। इसमें प्रकाशित लेख, अनुवाद और विचारों ने जन-जन के हृदय में धर्म, भक्ति और संस्कार की अलख जगाई। सरल भाषा, शुद्ध विचार और गहन आध्यात्मिक दृष्टि से परिपूर्ण कल्याण आज भी करोड़ों पाठकों का मार्गदर्शन कर रही है। कल्याण पत्रिका वास्तव में संस्कृति की जीवनरेखा है।
भाईजी ने अपना संपूर्ण जीवन राष्ट्र कल्याण और सनातन धर्म की सेवा में अर्पित किया। स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय योगदान, त्यागमय जीवन और भारतीय संस्कृति की पुनर्जागृति के लिए उनका प्रयास अनुपम है। वे सादगी, अनुशासन और निष्काम कर्मयोग के जीवंत उदाहरण थे।
भाईजी का जीवन केवल एक व्यक्ति का जीवन नहीं था, बल्कि वह एक युग का आलोक है। गीता प्रेस और कल्याण पत्रिका उनके तप का परिणाम हैं। उन्होंने घर-घर तक धर्म का अमृत पहुँचाया और करोड़ों लोगों के जीवन को संस्कारों से संपन्न किया।
भाईजी का जीवन भारतीय संस्कृति, राष्ट्रभक्ति और सनातन मूल्यों के प्रति समर्पण का अनुपम उदाहरण है। उनका जीवन निष्काम कर्मयोग, संस्कार और सेवा का अद्भुत संगम है और गीता प्रेस वास्तव में भारत की आत्मा का संवाहक है। यह संस्था हमें याद दिलाती है कि संस्कृति केवल पुस्तकों में नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला में है। गीता प्रेस घर-घर तक धर्म का प्रकाश पहुँचाकर भारतीय संस्कृति को अमर और अक्षुण्ण बनाए रखने का अविस्मरणीय कार्य कर रही है।

श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र, अयोध्या के महासचिव, श्री चंपतराय जी ने कहा कि भाईजी ने भारत की आत्मा को संजोने का कार्य किया और कल्याण में वास्तव में समाज का कल्याण करने का कार्य किया है।
कथावाचक श्री नरहरि दास जी ने कहा कि भाईजी के साहित्य ने करोड़ों हृदयों में भक्ति और संस्कृति का दीप जलाया।
डा. बालमुकुन्द पाण्डेय जी, डा. ओम जी उपाध्याय जी, प्रो. डा. जी.के. रथ जी और अन्य विद्वान विभूतियों ने भाईजी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर अपने विचार रखे और समाज को उनसे प्रेरणा लेने का आह्वान किया।
श्री रसेन्दु फोगला जी और श्री उमेश कुमार सिंहानिया जी ने सभी अतिथियों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि भाईजी ने जो बीज बोए थे, वही आज भारतीय संस्कृति की विशाल वटवृक्ष के रूप में फल-फूल रहे हैं।