November 22, 2024

उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलसचिव पर करोड़ों के राजस्व गबन का लगाया आरोप

देहरादून। दिल्ली के प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में आयोजित प्रेस वार्ता के दौरान एडवोकेट पुनीत कंसल ने उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलसचिव गिरीश कुमार अवस्थी की नियुक्ति को लेकर कई आरोप लगाए। प्रेसवार्ता के दौरान उन्होंने कहा कि अवैध नियुक्ति में कुलसचिव गिरीश कुमार अवस्थी ने करोड़ों के राजस्व का भी गबन किया है। उन्होंने इस संबंध में उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय, हरिद्वार के रजिस्ट्रार की फर्जी गतिविधियों को उजागर करते हुए कुलसचिव की अवैध नियुक्ति के उपरांत करोड़ों के राजस्व के किए गए गबन को लेकर एक दस्तावेजी सबूत भी पेश किया।

इस दस्तावेज के अनुसार उत्तराखण्ड लोक सेवा आयोग, हरिद्वार के तत्कालीन पदाधिकारियों पर आरोप है कि उनके द्वारा विज्ञापन सं 1 ध् विज्ञापन ध् सेवा 02ध्14-15 दिनांक 12.7.2014 में उक्त नियमों का उल्लंघन करते हुए कुलसचिव पद हेतु अयोग्य गिरीश कुमार(जीके) अवस्थी को उ.सं.वि.वि. हरिद्वार में कुलसचिव के पद पर नियुक्ति किया गया। शिकायतकर्ताओं ने कई बार इस संबंध में शिकायतें की लेकिन विभागीय स्तर से शिकायतों को दबाया जाता रहा। एडवोकेट पुनीत कंसल ने बताया कि आरोपी जीके अवस्थी द्वारा राजस्व की चोरी करने के लिए झूठे दस्तावेजों के आधार पर एवं सत्य को छुपाते हुए कुलसचिव पद हेतु आवेदन पत्र दाखिल किया गया। जीके अवस्थी विज्ञापनोक्त बिन्दु सं. 1क भाग 2 में उक्त 6600-10500 वेतनमान पर कार्य करने के 15 वर्षीय अनुभव को पूर्ण नहीं करते हैं। कंसल बताते हैं कि न्यायालय आदेश 15.7.2010 के अनुसार जीके अवस्थी की जीबी पंत इंजीनियरिंग कालेज घुडदौड़ी पौड़ी में कुलसचिव पद पर की गयी नियुक्ति अवैध सिद्ध हुई थी उन्हें पदावनत करते हुए सहायक कुलसचिव पर प्रत्यावर्तित किया गया था। और इस संबंध में आयुक्त स्तर से जांच कर आरोप पत्र दायर किया गया था और दोष भी सिद्ध हुए थे। इसके तहत वह विज्ञापनोक्त महत्वपूर्ण बिंदु संख्या 3 को पूर्ण नहीं करते। उन्होंने प्रेसवार्ता को संबोधित करते हुए बताया कि दस्तावेजों के अनुसार सर्विस बुक में अंकित टिप्पणी के अनुसार इनकी सत्यनिष्ठा व कार्यप्रणाली को संदिग्ध बताया गया है और कालेज के बॉयलाज का बार बार इनके द्वारा उल्लंघन किया गया है। इन्होंने वर्ष 2002 से 2005 तक सर्विस के साथ रेगूलर मोड पर 3 वर्षीय विधिस्नातक भी किया है इनकी विधिस्नातक की उपाधि या फिर संलग्न कार्य का अनुभव प्रमाण पत्र फर्जी है। आवेदन पत्र के बिन्दु बिन्दु सं.1, 5ग जिसमें प्रश्न है अभ्यर्थी कभी राजकीय सेवा से पदव्युत किया गया है अथवा हटाया गया है अथवा अनिवार्यतः सेवानिवृत्त अथवा किया गया है? यदि हाँ तो विवरण दें, के प्रत्युत्तर में कूट रचित ढंग से हस्त लिखित नहीं उत्तर दिया गया है, जो गलत है। एडवोकेट बंसल कहते हैं कि आवेदन पत्र के बिंदु संख्या 16 में लिखा है कि समकक्ष पद का कार्यानुभव है। कुलसचिव पद वांछित कार्य उत्तरदायित्वों के निर्वहन का लंबा अनुभव है। जबकि अवस्थी को सहायक कुल सचिव पद से 2005 में प्रोन्नत कर कुलसचिव का पदभार दिया। तथा 2010 में उच्च न्यायालय के आदेश पर अवस्थी को कुलसचिव पद से पदावनत कर पुनरू सहायक कुलसचिव का पदभार सौंपा गया। यह दस्तावेजी सबूत जो उनकी नियुक्ति प्रक्रिया में अनियमितताओं को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करता है।

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