*✨परमार्थ निकेतन में श्रीमद्भागवत भाव कथा का शुभारम्भ*
*🌺श्री गुरु नानक देव जी के ज्योति-ज्योत दिवस पर उन्हें कोटि-कोटि नमन*
*☘️विश्व ओजोन दिवस, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ओजोन परत संरक्षण हेतु समर्पित*
*💥समाज में प्रेम व करुणा का संचार यही भागवत कथा का सार*
ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन, माँ गंगा के पावन तट पर स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी के दिव्य सान्निध्य में श्रद्धेय गोवत्स श्री राधाकृष्ण जी महाराज के श्रीमुख से श्रीमद्भागवत भाव कथा का मंगलमय शुभारम्भ हुआ। गंगा की गोद में भागवत कथा का श्रवण आध्यात्मिक आनन्द के साथ जीवन को धर्म, सेवा और संस्कारों से जोड़े रखने की प्रेरणा भी है। स्वामी जी ने इस अवसर पर कहा कि श्रीमद् भागवत कथा जीवन की परम मार्गदर्शक है, जो हमें ईश्वर-भक्ति, मानवता की सेवा और प्रकृति संरक्षण का सन्देश देती है।
आज सिख धर्म के संस्थापक एवं प्रथम गुरु, श्री गुरु नानक देव जी के ज्योति-ज्योत दिवस पर परमार्थ निकेतन से उन्हें कोटि-कोटि नमन किया। गुरु नानक देव जी ने संदेश दिया कि ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग परोपकार, सेवा और भाईचारे से होकर जाता है। उन्होंने समाज को समानता, करुणा और प्रेम का अमूल्य संदेश दिया। गुरू नानक देव जी ने सम्पूर्ण मानवता को पउणु गुरू पाणी पिता माता धरति महतु का दिव्य संदेश दिया। आज भी गुरूवाणी हमें यह स्मरण कराती हैं कि वायु हमारे गुरु हैं, जल हमारे पिता और धरती हमारी माँ है। आज के पर्यावरणीय संकट में हमें यह भी बताती है कि प्रकृति की रक्षा करना ही सबसे बड़ा धर्म है।
आज 16 सितम्बर, विश्व ओजोन दिवस, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ओजोन परत संरक्षण हेतु समर्पित है। यह दिन हमें उस अदृश्य परन्तु अत्यन्त महत्वपूर्ण परत की याद दिलाता है जो पृथ्वी को सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणों से बचाती है। यह ओजोन परत प्रकृति की वही ढाल है जिसने धरती पर जीवन को सम्भव बनाया। यदि यह परत न हो, तो मानव ही नहीं, संपूर्ण जैविक जीवन विकिरणों की घातक लपटों में झुलस जाए।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि सनातन परम्परा ने सदैव हमें संदेश दिया कि प्रकृति ही परमात्मा का प्रत्यक्ष रूप है। वृक्ष हमारे प्राण हैं, नदियाँ हमारी जीवनधारा हैं और वायु-आकाश हमारा जीवन-सहचर। गुरु नानक देव जी ने जिस धरती को ‘माता’ कहा और जिस जल-वायु को गुरु-पिता कहा, वह आज हमें पुकार रही है कि हम केवल भक्ति में ही नहीं, बल्कि व्यवहार में भी प्रकृति को पूजें। पौधारोपण, प्रदूषण-नियंत्रण और संसाधनों का संयमित उपयोग ही सच्ची सेवा और सच्चा धर्म है।
उन्होंने कहा कि “श्रीमद्भागवत भाव कथा केवल आत्मा की मुक्ति का मार्ग नहीं दिखाती, बल्कि धरती और समाज के कल्याण का मार्ग भी दिखाती है। कथा हमें यह संदेश देती है कि भगवान श्रीकृष्ण ने भी वृक्ष, गो, गंगा और पर्वत की रक्षा की। उसी परम्परा को आगे बढ़ाते हुए आज हमें ओजोन परत जो आधुनिक युग में हमारी वैश्विक जीवन-रेखा है उसका संरक्षण करने हेतु आगे आना होगा।
श्रद्धेय गोवत्स श्री राधाकृष्ण जी ने कहा कि श्रीमद् भागवत कथा जीवन का अमृत है और धर्म व अध्यात्म का सार भी है। गंगा जी के पावन तट पर जब कथा का श्रवण करते हैं तो यह श्रोताओं के कानों में ही नहीं, बल्कि उनके हृदय में भी गूंजता है और आत्मा को जागृत करता है।
उन्होंने कहा कि भागवत कथा हमें भगवान श्रीकृष्ण की उन लीलाओं की याद दिलाती है, जिनमें केवल भक्ति ही नहीं, बल्कि पर्यावरण और संस्कृति की रक्षा का गहरा संदेश छिपा है। वृक्षों का संरक्षण, गौसेवा, नदी-जल की पवित्रता और समाज में प्रेम व करुणा का संचार यही भागवत कथा का सार है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने श्रद्धालुओं का आह्वान किया कि कथा का श्रवण केवल सुनने तक सीमित न हो, बल्कि जीवन में उसका आचरण भी हो।
कथा आयोजक श्रद्धेय श्री गिरिराज जी एवं मित्रमंडल, तथा शिक्षा के क्षेत्र में अद्भुत कार्य कर रहे एलएन ग्रुप, कोटा (राजस्थान) के श्री गोविंद जी, श्री राजेश जी, श्री नवीन जी और श्री विजय जी द्वारा यह दिव्य श्रीमद्भागवत कथा आयोजित की जा रही है। मां गंगा तट पर यह पावन आयोजन न केवल आध्यात्मिक आनंद का संचार कर रहा है, बल्कि श्रद्धालुओं के हृदयों में धर्म, संस्कार और जीवन मूल्यों का अमृत प्रवाह भी प्रवाहित कर रहा है। यह कथा वास्तव में आनंद, प्रेरणा और भक्ति का अद्वितीय संगम है।
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