परमार्थ निकेतन मां गंगा के पावन तट पर आयोजित श्रीमद् भागवत भाव कथा का समापन
💥स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और साध्वी भगवती सरस्वती जी के पावन सान्निध्य में श्रद्धेय गोवत्स श्री राधाकृष्ण जी महाराज के श्रीमुख से हो रही श्रीमद्भागवत भाव कथा का विश्राम
ऋषिकेश, 23 सितम्बर। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और साध्वी भगवती सरस्वती जी के पावन सान्निध्य में श्रद्धेय गोवत्स श्री राधाकृष्ण जी महाराज के श्रीमुख से परमार्थ गंगा तट पर प्रवाहित हो रहा श्रीमद् भागवत भाव कथा के प्रवाह का विश्राम हुआ। कथा आयोजक एलएन, कोटा राजस्थान से आये समस्त श्रद्धालुओं ने आध्यात्मिक आनन्द और मानसिक शांति का अनुभव किया।
इस दिव्य अवसर पर स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने नवरात्रि के महत्व पर गहनता से प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि नवरात्रि केवल उपवास या अनुष्ठान का पर्व नहीं है, बल्कि यह शक्ति की आराधना, आत्मसंयम और दिव्यता का महोत्सव है। नौ दिन, नौ रात्रियाँ और नौ दिव्य ऊर्जा रूपों के माध्यम से नवरात्रि जीवन में रचनात्मकता, शक्ति, धैर्य और आध्यात्मिक प्रगति को आलोकित करती है।
स्वामी जी ने कहा कि कथा केवल शब्दों का संकलन नहीं, बल्कि जीवन को दृष्टि, दिशा और प्रकाश देने वाला साधन है। जब हम श्रीमद्भागवत, रामायण, महाभारत आदि दिव्य कथा का श्रवण करते हैं, तो हमारे हृदय, मस्तिष्क और चेतना में सूक्ष्म परिवर्तन आरंभ होता है। कथा हमारे भावों को पवित्र करती है, करुणा, सहानुभूति और समर्पण की अनुभूति जागृत करती है। यह हमें अच्छाई, सच्चाई और ऊँचाई की बढ़ने की प्रेरणा देती है। हमारे विवेक और निर्णय शक्ति को भी सशक्त बनाती है।
कथा, विचारों में गहनता और स्पष्टता लाती है। कथा का प्रत्येक चरित्र, प्रत्येक प्रसंग हमारे मन में धैर्य, साहस और आत्मसंयम की प्रेरणा देता है। कथा हमारे भाव, विचार और व्यवहार में विलक्षण परिवर्तन करती है और जब कथा गोवत्स श्री राधाकृष्ण जी के श्री मुख से भाव भक्ति से हो तो वह अपार आनंद प्रदान करती हैं।
साध्वी भगवती सरस्वती जी ने कहा कि श्रीमद्भागवत भाव कथा केवल सुनने का अनुभव नहीं, बल्कि जीवन में धर्म, भक्ति और करुणा का अनुप्रयोग है। साध्वी जी ने कहा कि मां गंगा के तट पर कथा श्रवण का अनुभव अद्वितीय है। गंगा जी की पवित्र धारा केवल जल नहीं, बल्कि शुद्धता, शक्ति और आध्यात्मिकता का प्रवाह है। इस पावन वातावरण में कथा श्रवण करने से मन, वाणी और विचार शुद्ध होते हैं। मैने अपने जीवन में इस अनुभव के साक्षात दर्शन किये हैं। आज से लगभग 30 वर्ष पूर्व जब मैं पहली बार मां गंगा के तट पर आयी थी उस समय मैने गंगा जी को स्पर्श किया साथ ही गंगा जी ने भी मुझे स्पर्श कर मेरा पूरा जीवन, भाव, चिंतन सब कुछ बदल दिया।
श्रद्धेय गोवत्स श्री राधाकृष्ण जी महाराज ने श्रीमद्भागवत के मध्यम से जीवन मा अमृतपान कराया। उन्होंने कहा कि कथा श्रवण से मन में भक्ति, करुणा और संतोष का संचार होता है। कथा जीवन को नैतिक, आध्यात्मिक और सामाजिक दृष्टि से सशक्त बनाती है। गोवत्स जी ने यह भी बताया कि गंगा तट पर कथा श्रवण करने का विशेष महत्व है, क्योंकि गंगा की पवित्रता और वातावरण की दिव्यता न केवल शरीर को बल्कि हृदय और मस्तिष्क को आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करती है।
कथा आयोजक श्रद्धेय श्री गिरिराज जी एवं मित्रमंडल, तथा शिक्षा के क्षेत्र में अद्भुत कार्य कर रहे एलएन ग्रुप, कोटा (राजस्थान) के श्री गोविंद जी, श्री राजेश जी, श्री नवीन जी और श्री विजय जी और पूरे परिवार ने गद्गद् हृदय से कृतज्ञता व्यक्त करते हुये परमार्थ निकेतन से विदा ली।
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