October 12, 2025

परमार्थ निकेतन में आयोजित तीन दिवसीय योग व ध्यान कार्यक्रम का समापन

परमार्थ निकेतन में आयोजित तीन दिवसीय योग व ध्यान कार्यक्रम का समापन*

जीवन यज्ञ बने का संकल्प*ध्यान के साथ दूसरों का ध्यान रखना भी जरूरी*

योग जिज्ञासु केवल योगी ही नहीं बल्कि स्वयं को सहयोगी, उपयोगी और उद्योगी भी बनाये*

*🙏🏾स्वामी चिदानन्द सरस्वती*

ऋषिकेश। आज शरद पूर्णिमा के पावन अवसर पर परमार्थ निकेतन में अखिल भारतीय ध्यान योग संस्थान, गाजियाबाद द्वारा आयोजित तीन दिवसीय योग ध्यान कार्यशाला का आज विश्व शान्ति यज्ञ व विशेष शरद पूर्णिमा ध्यान के साथ समापन हुआ। इस आयोजन में देशभर से आये योग, ध्यान और अध्यात्म के साधकों ने सहभाग कर परमार्थ गंगा तट पर व्याप्त आध्यात्मिक ऊर्जा के सागर में स्वयं को डुबोते हुए आंतरिक शांति का अनुभव किया।

शरद पूर्णिमा के पावन अवसर पर आयोजित इस समापन समारोह ने प्रतिभागियों को ध्यान, यज्ञ, योग और प्राचीन भारतीय साधना के मार्ग पर आत्मिक यात्रा का अनुभव कराया।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि शरद पूर्णिमा अर्थात् सिद्ध पूर्णिमा यह उस दिव्य रात्रि का प्रतीक है जब चन्द्रमा अपनी सोलह कलाओं से पूर्ण होकर अमृतमयी किरणें धरती पर बरसाते हैं। यह केवल वातावरण को नहीं, अपितु मन और चेतना को भी शीतलता और शांति से भर देती है। यह रात्रि अमृत वर्षा की रात्रि है। चन्द्रकिरणों की शीतलता हमें क्रोध, अहंकार और अशांति को त्यागकर अंतर्मन में शांति जगाने की प्रेरणा देती है।

इसी पावन रात्रि में श्रीकृष्ण जी ने गोपियों के साथ महा-रास रचा जो लौकिक प्रेम से परे, आत्मा और परमात्मा के मिलन का प्रतीक है। आइए, इस शरद पूर्णिमा पर अपने भीतर की कलाओं यथा धैर्य, करुणा, सेवा, ज्ञान, विनम्रता और प्रेम को जागृत करें और अपने जीवन को चन्द्रमा की तरह शांत, निर्मल और प्रकाशमय बनाएं।

स्वामी जी ने कहा कि ध्यान अर्थात् जीवन का संतुलन। ध्यान से तात्पर्य स्वयं के साथ-साथ दूसरों का भी ध्यान रखना। योग का साधक केवल योगी नहीं होता बल्कि योग हमें सहयोगी, उपयोगी और उद्योगी भी बनाता है। जब हम अपने जीवन को एक यज्ञ मानकर उसमें सेवा, संवेदना और सद्भाव की आहुति देते हैं, तब ध्यान साकार होता है। आइए, इस शरद पूर्णिमा पर संकल्प लें कि हम अपने जीवन को एक यज्ञमय जीवन बनाएं, जिसमें हर कर्म प्रेम, करुणा और सेवा से पूर्ण हो। यही वास्तविक योग और ध्यान का संदेश है।

साध्वी भगवती सरस्वती जी, ने आज शरद पूर्णिमा के पावन अवसर पर सभी को एक विशेष ध्यान कराया।

इस तीन दिवसीय विशेष सत्र में प्रतिभागियों ने सांस के नियंत्रण, मानसिक शांति और ध्यान केंद्रित करने की तकनीक का अभ्यास किया। इसके अतिरिक्त प्राचीन भारतीय योग मुद्राओं और आसनों का लाभ भी प्रतिभागियों को प्राप्त हुआ।

अखिल भारतीय ध्यान योग संस्थान, गाजियाबाद के अध्यक्ष श्री कृष्ण कुमार अरोड़ा जी ने कहा कि शहर से दूर प्रकृति की वादियाँ व मां गंगा जी के पावन तट परमार्थ निकेतन आकर प्रतिभागियों ने अत्यंत शान्ति का अनुभव किया। उन्होंने कहा कि परमार्थ निकेतन का यह दिव्य वातावरण स्वर्ग से कम नहीं है। इस आध्यात्मिक आनंद को आत्मसात करने के लिये वर्ष में एक बार नहीं बल्कि दो बार तो परमार्थ निकेतन जरूर आना चाहिये।

अखिल भारतीय ध्यान योग संस्थान के सचिव ने कहा, हमारा उद्देश्य मात्र योग और ध्यान सिखाना नहीं है, बल्कि लोगों के जीवन में संतुलन, मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा लाना है। इस आयोजन के माध्यम से हम यह संदेश देना चाहते हैं कि योग और ध्यान प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का अभिन्न हिस्सा होना चाहिए। शरद पूर्णिमा के इस पावन अवसर ने इस आयोजन को और भी दिव्य बना दिया।

अखिल भारतीय ध्यान योग संस्थान, गाजियाबाद, निरंतर इस प्रकार के आयोजनों के माध्यम से समाज में योग और ध्यान के महत्व को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है। परमार्थ निकेतन के इस दिव्य प्रांगण में पूज्य स्वामी जी के पावन सान्निध्य में संस्थान के माध्यम से आने वाले वर्षों में भी ऐसे अनेक कार्यक्रम आयोजित किए जाने की प्रतिबद्धता दिखायी ताकि प्रतिभागियों को योग, ध्यान, अध्यात्म और भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों के अनुभव साधकों को प्राप्त हो सके।

इस अवसर पर संयोजक श्री राजेश शर्मा जी, श्री दयानन्द शर्मा जी, श्री अशोक शास्त्री जी, श्री मनमोहन बोहरा जी, श्री प्रदीप त्यागी जी और श्री असील कुमार जी सहित योगाचार्यों एवं साधकों ने पूज्य स्वामी जी और परमार्थ निकेतन का अभार व्यक्त किया।