सीरम कितना कमाती है?
कॉरपोरेट कंपनियों के आंकड़ों की जानकारी रखने वाली कंपनी कैपिटलिन के मुताबिक, 2019-20 में, 418 भारतीय कंपनियों को 5,000 करोड़ से ज्यादा की आमदनी हुई.
लेकिन इस दौरान जिस कंपनी ने सबसे ज्यादा मुनाफा हासिल किया वो सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया था. इस दौरान कंपनी को 5,446 करोड़ की आमदनी हुई. वहीं, 2,251 करोड़ का मुनाफा हुआ.अगर परसेंटड के लिहाज से देखें तो यह 41.3 फीसदी है.
वैल्यूएशन के मामले में कितनी बड़ी है सीरम
सीरम शेयर बाजार में लिस्टेड नहीं है. इसीलिए इसकी सटीक जानकारी मिल पाना मुश्किल है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, मौजूदा वैल्यूएशन करीब 2 लाख करोड़ रुपये तक हो सकती है.
और कौन-कौन से कारोबार से जुड़ी है सीरम
पूनावाला फैमिली ने और भी कई जगह इन्वेस्टमेंट किया है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, एविएशन और क्लीन एनर्जी बिजनेस से भी कमाई शुरू हो गई है.
मार्च 2020 में सब्सिडियरी कंपनियों की संख्या डबल होकर 8 हो गई. इसके अलावा इन्होंने भारत में फिनटेक और विंड एनर्जी जैसे क्षेत्रों में निवेश किया है.
नॉन-बैंकिंग फाइनेंस कंपनी मैग्मा फिनकॉर्प में 3,456 करोड़ रुपये में 60 फीसदी हिस्सेदारी भी खरीदी है. कैश की कमी नहीं है. कंपनी छोटे, मध्यम और बड़े कर्ज देकर बाद में अच्छी कमाई कर सकती है
फिर ऐसी बनी दुनिया की सबसे बड़ी वैक्सीन कंपनी
एक जमाना था जब भारत में पूनावाला सरनेम हार्स रेसिंग और ब्रीडिंग में एक बड़ा नाम था. 40 के दशक से लेकर अब हार्स रेसिंग में दौड़ने वाले ज्यादातर घोड़े पुणे के पूनावाला हार्सिंग फॉर्म की देन होते थे. यहां उन घौड़ों को तराशा भी जाता है और उनकी ब्रीडिंग भी होती है.
वैक्सीन किंग कहे जाने वाले डॉक्टर सायरस पूनावाला ऐसे परिवार में पैदा हुए थे, जो दशकों से भारत में हार्स रेसिंग सर्किट में जाना-पहचाना नाम था. उनके परिवार के पास खासा लंबा चौड़ा पूनावाला स्टड फार्म्स है.
20 साल की उम्र तक डॉक्टर पूनावाला को महसूस हुआ कि भारत में हार्स रेसिंग का भविष्य नहीं है. तब उन्होंने कारों का प्रोटोटाइप स्पोर्ट्स कार मॉडल बनाना शुरू किया.लेकिन इसको कामर्शियल आधार बनाने के लिए बहुत धन की जरूरत थी. तब सायरस पूनावाला ने ये आइडिया छोड़ दिया.
पूनावाला परिवार अपने फार्म के रिटायर्ड घोड़े मुंबई के सरकारी हाफकिन इंस्टीट्यूट को देते थे, जो घोड़ों के सीरम से वैक्सीन बनाती थी. इसने डॉक्टर पूनावाला ये विचार दिया कि घोड़ों के सीरम के जरिए देश के लिए वैक्सीन तो खुद भी बना सकते हैं
बस इसके बाद 1966 में डॉक्टर पूनावाला ने सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) की स्थापना की, जो अपनी तरह की पहली थेरेपटिक और एंटी टीटनेस सीरम बनाती थी.
1974 में सीरम इंस्टीट्यूट ने डीटीपी वैक्सीन बनानी शुरू की, जो बच्चों को डिप्थीरिया, टीटनेस और पेरट्यूसिस से बचाती थी.फिर 1981 में उन्होंने सांप कांटने के बाद बचाने वाली एंटी स्नेक वेनोम सीरम बनाई.फिर चेचक के टीकों का उत्पादन शुरू हुआ.
ये कंपनी देश में सबसे बड़ी वैक्सीन निर्माता कंपनी बन गई. पहले ये सारे टीके बाहर से आते थे. अब देश में ही पर्याप्त संख्या में बनने लगे.
1994 में सीरम इंस्टीट्यूट का एक्रेडेशन वर्ल्ड हेल्थ आर्गनाइजेशन ((WHO) से भारत से वैक्सीन एक्सपोर्ट के लिए हुआ और उसने यूएन एजेंसीज और पैन अमेरिकन हेल्थ आर्गनाइजेशन को वैक्सीन का निर्यात शुरू किया. अब ये कई तरह की वैक्सीन बनाती है. जो दुनियाभर के 170 से ज्यादा देशों में 65 फीसदी बच्चों को कवर करते हैं.
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