हरिद्वार। श्रीपंच दशनाम जूना अखाड़े की पौराणिक पवित्र छड़ी यात्रा ने बद्रीनाथ धाम मे पूजा-अर्चना कर अपना प्रथम चरण पूरा कर लिया है। बद्रीनाथ धाम पहुचने से पूर्व अखाड़े के अन्र्तराष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमहंत प्रेमगिरि महाराज, प्रमुख छड़ी महंत श्रीमहंत शिवदत्त गिरि, श्रीमहंत विशम्भर भारती, श्रीमहंत पुष्करराज गिरि, श्रीमहंत कुशपुरी के नेतृत्व में साधु-संतो का जत्था जोशीमठ पहुचा, जहां आद्य जगद्गुरू शंकराचार्य मठ के गादीपति स्वामी मुकुन्दानंद ब्रहमचारी ने पवित्र छडी की पूजा-अर्चना कर सभी संतो का स्वागत किया। पूजा-अर्चना के पश्चात पवित्र छड़ी पवित्र कल्प वृक्ष के दर्शनों को पहुची। इसी कल्पवृक्ष के नीचे जगद्गुरू शंकराचार्य ने एक गुफा में साधना कर ग्रंथों की रचना की थी। पवित्र छड़ी को शंकराचार्य गुफा के दर्शनों के पश्चात स्वामी मुकुन्दानंद ब्रहमचारी की अगुवाई में सभी साधु-संत पवित्र छड़ी के साथ नगर का भ्रमण करते हुए हर-हर महादेव के जयघोष के साथ नरसिंहमन्दिर पहुचे। भ्रमण के दौरान स्थानीय नागरिको ने पवित्र छड़ी व साधु-संतो का जगह-जगह स्वागत किया व संतो का अर्शीवाद प्राप्त किया। नरसिंह मन्दिर में तीर्थ पूरोहितों ने पवित्र छड़ी की पूजा-अर्चना कर सभी को भगवान बद्रीश का आर्शीवाद दिया और इस पावन पवित्र छड़ी यात्रा के सफल होने की भगवान से प्रार्थना की।
स्वामी मुकुन्दानंद ब्रहमचारी ने बताया इस दशनामी छड़ी यात्रा की परम्परा ढाई हजार वर्ष पूर्व आद्यजगद् गुरू शंकराचार्य महाराज ने सनातन धर्म की स्थापना तथा गैर सनातनी विधर्मियों के उन्मूलन के लिए चलाई थी ओर पूरे भारतवर्ष में दिग्विजय यात्रा के माध्यम से सनातन धर्म का वर्चस्व कायम कर दिया था। जूना अखाड़े की यह पवित्र छड़ी इसी परम्परा का अनुसरण है। इस यात्रा का उददे्श्य भी सनातन धर्म की स्थापना देवभूमि उत्तराखण्ड में वर्ग विशेष की घुसपैठ को रोकना तथा प्रदेश से हरहे पलायन पर अंकुश लगाना है। शंकराचार्य मठ में रात्रि विश्राम के पश्चात शनिवार को पवित्र छड़ी गोविन्द घाट से घांधरियों होते हुए लक्ष्मण कुण्ड की ओर रवाना हुयी, लेकिन मार्ग अवरूद्व होने के कारण वही से लोकपाल पर्व के दर्शन करते हुए प्रतीकात्मक पूजा-अर्चना की। पौराणिक आख्यानों के अनुसार लक्ष्मण कुण्ड में भगवान लक्ष्मण ने तपस्या की थी। यहां से पाण्डूकेश्वर मन्दिर पवित्र छड़ी पहुची। इस पौराणिक मन्दिर की स्थापना पाण्डवों ने की थी। महाभारत युद्व की समाप्ति के पश्चात पांडव पश्चताप करने के लिए हिमालय में आए थे इसी स्थान पर उन्होने योगध्यान किया था। इसलिए इसे योग ध्यान बद्री भी कहते हैं। पाण्डूकेश्वर मन्दिर में पूजा-अर्चना के बाद पवित्र छड़ी गढ़वाल मण्डल की यात्रा के अन्तिम पड़ाव में शनिवार को बद्रीनाथ धाम पहुची। जहां महामण्डलेश्वर स्वामी बालकदास ने अपने अनुयायियों के साथ पवित्र छड़ी की पूजा-अर्चना कर स्वागत किया। शाम को महामण्डलेश्वर बालकदास महाराज स्वयं पवित्र छड़ी को लेकर साधुओं के जत्थे सहित बाबा बद्रीनाथ के दर्शनों व पूजा-अर्चना के लिए मन्दिर पहुचे। मन्दिर के पूरोहितों, पुजारियों व बद्रीकेदार समिति के अधिकारियों ने भगवान बद्रीनाथ के चरण में पवित्र छड़ी का स्पर्श कराकर पूजा-अर्चना कर सभी को भगवान का आर्शीवाद दिया। पवित्र छड़ी को बद्रीनाथ भगवान को समर्पित अंगवस्त्र पहनाया।
श्रीमहंत प्रेमगिरि महाराज ने बताया पौराणिक पवित्र छड़ी यात्रा का प्रथम चरण पूरा हो गया। अपने प्रथम चरण में पवित्र छड़ी हरिद्वार मायादेवी मन्दिर से प्रारम्भ हुयी थी। अपनी दस दिवसीय यात्रा के दौरान पवित्र छड़ी लाखामण्डल, यमुनोत्री धाम, गंगोत्री, केदारनाथ, त्रिजुगीनारायण, उत्तरकाशी में काशी विश्वनाथ मन्दिर, ओमकारेश्वर महादेव उखीमढ, तृंगनाथ, अनुसूईया मण्डल कोटेश्वर महादेव रूद्रप्रयाग, लक्ष्मणकुण्ड, व्यास गुफा, सीतामढ़ी सहित कई अन्य पौराणिक तीर्थो, मठ-मन्दिरों में पूजा-अर्चना के लिए गयी। सभी जगह स्थानीय नागरिकोें ने पवित्र छड़ी पर पुष्पवर्षा कर साधु-संतो का स्वागत किया। उन्होने कहा रविवार को पवित्र छड़ी कर्णप्रयाग पहुचेगी, जहां से कुमायूॅ मण्डल की यात्रा प्रारम्भ की जायेगी।
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