भारत एक कृषि प्रधान देश है जहां की तक़रीबन आधी जनसँख्या अपने जीवन यापन के लिए कृषि पर निर्भर है, और कृषि पूर्णतया जल पर, जिस प्रकार भारत जल के संकट से जूझ रहा है वो दिन दूर नहीं जब हम आने वाले भविष्य की कल्पना भी नहीं कर पाएंगे। हम आज अपने मौलिक अधिकारों की बात तो करते है, पर क्या हमे अपने कर्त्वयों का बोध है ? महात्मा गाँधी ने कहा है कि अधिकार एवं कर्त्तव्य दोनों एक ही सिक्के के दो पहलु हैं यदि हम अपने अधिकारों के प्रति सजग हैं तो हमे अपने कर्तव्यों का निर्वाह करने में पीछे नहीं हटना चाहिए इसी सम्बन्ध में मुझे एक पुरानी किदवंती याद आ रही है एक कौआ प्यासा था घड़े में थोड़ा पानी था इस किदवंती में कौवा ने जिस प्रकार दो घूंट पानी के लिए संघर्ष किया था आज हमे भी उसी परिश्रम की आवश्यक्ता है अपनी अमूल्य धरोहर जल को बचाने के लिए।
एक सर्वे के अनुसार भारत के तीन शहर दिल्ली, अहमदाबाद, बैंगलोर में पानी का स्तर इतना काम हो गया था की 2020 तक ये तीनो राज्य जलविहीन हो जाते यदि इस बार की बारिश अच्छी नहीं हुई होती चूँकि इस बार मानसून अच्छा आया तो फ़िलहाल यह संकट दो वर्षो के लिए कुछ हद तक टल गया है,भारत में बहुत से ऐसे राज्य हैं जहाँ गर्मी के मौषम में जल संकट हो जाता है और वहां के लोगो को जल खरीदना पड़ता है कैसी विडम्वना है जल जो प्रकृति द्वारा हमे निशुल्क प्रदत है आज हमे उसे खरीदना पड़ रहा है इस विषय पे गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है।
हम ये तो जानते है की जल ही जीवन है पर क्या हम ये मानते है ? क्या हमने कभी स्वयं से ये प्रश्न किया है कि हमारे जीवन में जल क्या महत्त्व है? एक पुरानी कहावत है की बून्द बून्द से सागर भरता है यदि बून्द बून्द से सागर भरता है तो वो ख़तम भी हो सकता है अगर हम उसको बर्बाद करते हैं। बहुत सी ऐसी सामाजिक संस्थाए हैं जो जल संरक्षण की ओर अपना प्रयास कर रही हैं और सफल भी हो रही हैं ,वे जनता को जल बचाने के प्रति जागरूक भी कर रही हैं एवं ऐसे आयामों की व्यवस्था भी कर रही हैं जिससे वर्षा के पानी को इक्क्ठा करके जल संकट से निपटा जाये| कहते हैं शिशु की प्रारंभिक पाठशाला घर से शुरू होती है हमे सर्वप्रथम स्वयं को एवं अपने परिवार को शिक्षित करना होगा और उन्हें बताना होगा की जल की बर्बादी को कैसे रोका जाये हम अपने घरो में नहाने के लिए झरनो के स्थान पे बाल्टी का प्रयोग, ब्रश करते समय नल को बंद रखने के इत्यादि तरीको से पानी को बर्बाद होने से बचा सकते हैं आजकल शहरी इलाको में शुद्ध पानी के लिए लोग अपने घरो में वाटर पूरिफिएर का प्रयोग करते है। वाटर पूरिफिएर से निकला अशुद्ध पानी एक पाइप के रास्ते नाली में गिरता है यदि हम उस पानी को किसी पात्र में इक्कठा कर लो तो उसका उपयोग हम स्नान करने एवं ब्रश करने में कर सकते हैं इन छोटे छोटे प्रयोगो से हम जल बर्बाद होने से बचा सकते हैं।
एक दूसरा तथ्य यह भी है की जो जल आज हम अपने लिए प्रयोग करते हैं वो प्रदूषण-रहित होना चाहिए। प्रदूषित जल को पीने की वजह से आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में लोगो को गंभीर रोगो का सामना करना पड़ता है, आज हम जिस वातावरण में जीवन व्यतीत कर रहे हैं वहां प्रदुषण का स्तर इतना बढ़ गया है की न तो वायु शुद्ध है और ना ही जल, वर्त्तमान परिस्थिति में इन संकटो से लड़ने के लिए जागरूक रहने की आवश्यकता है ऐसा नहीं है की लोग जागरूक नहीं है बहुत से लोग इन समस्याओ से लड़ रहे हैं और उनका जीवन हमे इस बात की प्रेरणा देता है की हमे भी स्वयं को जागरूक रखते हुए उनका साथ देना चाहिए।
एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक ने कहा है की आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है, यदि हम ये मानते है की जल है तो कल है, हमे अविष्कार करने होंगे अविष्कार से मेरा तात्पर्य यहाँ वैज्ञानिक अविष्कार नहीं अपितु वैचारिक अविष्कार जिससे हम जल ही जीवन के महत्त्व को स्वीकारते हुए जल के संवर्धन को अपना परम कर्त्तव्य मानते हुए समाज को शिक्षित करे एवं अपनी वर्त्तमान और आने वाली पीढ़ी को स्वस्थ एवं खुशहाल जीवन दे सके
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