November 23, 2024

बाबा रामदेव ने सीडीएस जनरल बिपिन रावत की दुर्घटना में हुई मौत पर साजिश की आशंका जताई।

हरिद्वार। पतंजलि गुरुकुलम के नवीन परिसर के भूमि पूजन और शिलान्यास अवसर पर योगगुरु बाबा रामदेव ने कहा कि करीब 500 करोड़ की लागत से बन रहे इस भवन में भारत के गौरवशाली इतिहास और गुरुकुल परंपरा के दर्शन होंगे। इस दौरान बाबा रामदेव ने सीडीएस जनरल बिपिन रावत की दुर्घटना में हुई मौत पर साजिश की आशंका जताई। साथ ही जनरल रावत को भारत रत्न देने की भी मांग की। बाबा रामदेव ने कहा कि पतंजलि गुरुकुलम का उद्देश्य दिव्य और भव्य व्यक्तित्व का निर्माण करना है। यहां वैदिक शिक्षा के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा और भारतीय मूल्यों का ज्ञान भी छात्र-छात्राओं को प्रदान किया जाएगा।

उन्होंने बताया कि यहां तीन से पांच साल के छोटे बच्चों ने गीता, पंचोपदेश, अष्टाध्यायी, धातुपाठ, क्षलगानुशासन आदि कंठस्थ कर लिया है। उन्होंने कहा कि मेरे मन में हमेशा एक विचार रहा है कि हमारी वेद परंपरा, ऋषि परंपरा, ऋषि संस्कृति, योग, अध्यात्म और अध्यात्मवाद को भौतिकवाद से अधिक गौरव मिलना चाहिए। नन्हें बच्चों से शास्त्र श्रवण कर कार्ष्णी पीठाधीश्वर शरणानंद महाराज ने कहा कि 500 से 1000 सूत्र एक दिन में कंठस्थ करना बड़ी बात है। आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि यहां से अष्टाध्यायी, धातुपाठ, पंचोपदेश, वेद, उपनिषद आदि का ज्ञान प्राप्त कर यह बच्चे देश-विदेश में भारतीय ऋषि परंपरा की पताका फहराएंगे। जूना पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि महाराज ने कहा कि बच्चे भावी राष्ट्र निर्माता हैं। विदेशों में आज संस्कृत और भारतीय परंपराओं को अपनाया जा रहा है, लेकिन हमारे देश में लोग पाश्चात्यता की ओर भाग रहे हैं। पतंजलि गुरुकुलम की स्थापना से भारतीय परंपराओं और ऋषि संस्कृति को गौरव मिलेगा। वात्सल्य ग्राम की संस्थापिका दीदी मां ऋतंभरा ने कहा कि पतंजलि गुरुकुलम के भूमि पूजन का साक्षी बनना स्वयं में गौरव की बात है। राम मंदिर ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष आचार्य गोविंददेव गिरि महाराज ने कहा कि संयमित जीवन और आध्यात्मिक दृष्टिकोण सफल जीवन का मार्ग है। साधना आश्रम, डुमेठ, ऋषिकेश से स्वामी प्रेम विवेकानंद ने भी अपने विचार रखे। पूजन कार्य विशेष तौर पर काशी से पधारे प्रकांड पंडित मनोज मणि त्रिपाठी ने किया। इससे पूर्व पतंजलि गुरुकुलम के नवीन परिसर का भूमि पूजन और शिलान्यास कार्ष्णी पीठाधीश्वर शरणानंद महाराज ने किया।

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