September 8, 2024

हृदय में सिम्पैथी और विचारों में पाॅजिटिविटी होना नितांत आवश्यक : स्वामी चिदानन्द सरस्वती

ऋषिकेश।  परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने उत्तराखण्ड आयुर्वेद विश्वविद्यालय, उत्तराखण्ड के कार्यक्रम सहभाग कर भावी चिकित्सकों को सम्बोधित किया।

तत्पश्चात पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज और उत्तराखण्ड आयुर्वेद विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. डॉ. सुनील कुमार जोशी जी की लोकल आयुर्वेदिक औषधीयों के प्रचार-प्रसार को लेकर चर्चा हुई।

भारत के दो महान राजनीतिक युगपुरूषों का 25 दिसम्बर को जन्मदिवस हैं। भारत रत्न, उदारमना व भारत के अभूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री अटलबिहारी वाजपेयी जी और भारत रत्न महामना श्री मदन मोहन मालवीय जी दोनों युगपुरूषों के जन्मदिवस की पूर्व संध्या पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने आज प्रातःकाल विश्व शान्ति यज्ञ के पश्चात ‘परमार्थ निकेतन ग्लोबल स्कूल’ की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया। इस हेतु एक विशेष अंग का गठन किया। आज परमार्थ निकेतन ग्लोबल स्कूल व उत्तराखण्ड आयुर्वेद विश्वविद्यालय के मध्य एक एमओयू पर हस्ताक्षर हुये। इसके अंतर्गत आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक चिकित्सा, नेचुरोपैथी, मर्म चिकित्सा आदि विषयों को लेकर परमार्थ निकेतन में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रशिक्षण और चिकित्सा हेतु कार्यक्रमों का आयोजन किया जायेगा।

उत्तराखण्ड आयुर्वेद विश्वविद्यालय में जो कोर्स और चिकित्सा प्रकल्प चलाये जा रहे हैं उनका एक माॅडल सेंटर परमार्थ निकेतन में स्थापित किया जायेगा। आगामी मार्च को परमार्थ निकेेतन में अन्तराष्ट्रीय आयुर्वेद महासम्मेलन और निःशुल्क चिकित्सा शिविर का आयोजन किया जायेगा जिसमें वैश्विक स्तर के 100 से अधिक आयुर्वेदाचार्य सहभाग करेंगे तथा इस अवसर पर आयुर्वेद संसद का आयोजन भी किया जायेगा।

पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने आयुर्वेद विश्वविद्यालय में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहें छात्रों को सम्बोधित और प्रेरित करते हुये कहा कि आने वाले दिनों में आप सभी उदयमान नक्षत्र की तरह चमके और आयुर्वेद को विश्व पटल पर लेकर जाये चूंकि आने वाला समय आयुर्वेद का है। आयुर्वेद केवल चिकित्सा पद्धति नहीं बल्कि जीवन पद्धति है। आयुर्वेद स्वस्थ जीवन का आधार है तथा आयुर्वेद का युगों से अपना महत्व है। ‘ऋग्वेद’ भारतीय संस्कृति और जीवन पद्धति की सबसे प्राचीनतम रचनाओं में से एक है, जिसमें अश्विनी कुमारों को देव वैद्य कहा गया है। भारत में प्रचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद का वर्णन चरक संहिता, सुश्रुत संहिता और अष्टांग संग्रह आदि कई संहिताओं में किया गया हैं।

आयुर्वेद का अर्थ है ‘जीवन का विज्ञान’ ‘दीर्घ आयु’ या आयु और वेद का अर्थ हैं ‘विज्ञान। आयुर्वेद के अनुसार जीवन के उद्देश्यों यथा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति के लिये स्वास्थ्य का उत्तम होना नितांत आवश्यक है। आयुर्वेद तन, मन और आत्मा के बीच संतुलन स्थापित कर व्यक्ति के स्वास्थ्य में सुधार करता है। आयुर्वेद में न केवल उपचार होता है बल्कि यह जीवन जीने का ऐसा तरीका सिखाता है, जिससे जीवन स्वस्थ और खुशहाल होता है।

पूज्य स्वामी जी ने कहा कि पैथी कोई भी हो परन्तु हृदय में सिम्पैथी और विचारों में पाॅजिटिविटी होना नितांत आवश्यक है। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद के पुनर्जागरण करना अत्यंत आवश्यक है। इस समय हमें लोकल के लिये वोकल बनना होगा और लोकल वस्तुओं को ग्लोबल तक पहुंचाना होगा। ये यात्रा बी लोकल फाॅर वोकल एंड बीकम ग्लोबल तक पहुंचानी होगी। पहाड़ी वस्तुयें जो लोकल है उसके लिये प्रत्येक व्यक्ति को वोकल होना होगा और ग्लोबल तक पहुंचाने के लिये प्रयत्न करना होगा। पूज्य स्वामी जी ने कहा कि अपने मसाले, अपनी जड़ी-बूटियाँ, हल्दी, अदरक, सौफ, जीरा को ग्लोबल तक पहंुचाने हेतु वोकल होने की जरूरत है।

पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने डॉ. सुनील कुमार जोशी जी को रूद्राक्ष का पौधा भेंट कर माँ गंगा की आरती हेतु आमंत्रित किया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के रजिस्टर डा राजेश कुमार, प्रोफेसर सुनील कुमार जोशी, कुलपति प्रोफेसर राधबल्लभ सती, परिसर निदेशक, डॉक्टर राजेश कुमार, कुलसचिव, श्री अमित जैन, वित्त नियंत्रक, संजीव कुमार पाण्डेय, सहायक कुलसचिवय चंद्रमोहन पैन्यूली, निजी सचिव, डॉक्टर दीपक सेमवाल, डॉक्टर आशुतोष चैहान और अतिथि उपस्थित थे।