
गणेश चतुर्थी व्रत कथा एक बार महादेव जी भोगावती नदी पर स्नान करने गए उनके चले जाने के बाद पार्वती माता ने अपने तन की मेल से एक पुतला बनाया और उसमें प्राण डाले। उसका नाम ष्गणेश रखा। पार्वती माता ने उससे कहा कि एक मुगदल लेकर द्वार पर बैठ जाओ और जब तक मैं नहा रही हूं किसी को अंदर मत आने देना।
भोगावती पर से स्नान करने के बाद जब भगवान शिव जी आए तो गणेश जी ने उन्हें द्वार पर ही रोक लिया शिवजी ने बहुत समझाया पर गणेश जी नहीं माने। इसको शिव जी ने अपना अपमान समझकर उस पर क्रोध किया और त्रिशूल से उसका सिर धड़ से अलग कर के भीतर चले गए। जब माता पार्वती को पता चला कि शिव जी ने गणेश जी का सिर काट दिया है तो वे बहुत कुपित हुई।
गणेश जी के मूर्छित होने से पार्वती माता अत्यंत दुखी हुई और उन्होंने अन्न जल का त्याग कर दिया। पार्वती जी की नाराजगी दूर करने के लिए शिव जी ने गणेश जी के हाथी का मस्तक लगाकर जीवनदान दिया। तब देवताओं ने गणेश जी को तमाम शक्तियां प्रदान की और प्रथम पूज्य बनाया। यह घटना भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को हुई थी इसलिए यह तिथि पुण्य पर्व ष्गणेश चतुर्थीष् के रूप में मनाई जाती है।
मान्यता है कि गणेश चतुर्थी के दिन व्रत पालन कर गणेश चतुर्थी व्रत कथा को सुनने अथवा पढ़ने से व्यक्ति के पाप नष्ट हो जाते हैं और जीवन मे कष्टों का निवारण होता है। गणेश चतुर्थी व्रत कथा व्यक्ति की मनोकामनाएं पूर्ण करने वाली और जीवन में सुख समृद्धि लाने वाली बताई गई है।

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