*💐संतों, शिक्षाविदों एवं समाज के गणमान्य व्यक्तियों द्वारा मार्गदर्शन*
*🌸परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी, वरिष्ठ प्रचारक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, श्री दिनेश चन्द्र जी, माननीय मुख्यमंत्री हरियाणा श्री नायब सिंह सैनी जी, निर्देशक अखिल भारतीय संत समिति श्री स्वामी धर्मदेव जी आदि विभूतियों का पावन सान्निध्य*
*✨विभूतियों ने वेदों की महिमा पर व्यक्त किये विचार*
*🌺वेदों के अनुसार समाज में किसी भी प्रकार की असमानता और भेदभाव का कोई स्थान नहीं*
*💐वेद, भारतीय ज्ञान का सबसे प्राचीन और सबसे व्यापक स्रोत*
*🙏🏾स्वामी चिदानन्द सरस्वती*
ऋषिकेश, गुरूग्राम। 27 दिसम्बर। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने वेदों द्वारा समाज के कल्याण और विकास हेतु प्रेरणादायक विचार व मार्गदर्शन कार्यक्रम में सहभाग कर वेदों की समग्रता पर अपना उद्बोधन दिया।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि वेद, ऋषि-मुनियों के ज्ञान से युक्त भारतीय संस्कृति की अनमोल धरोहर है। वेदों में धार्मिक आस्थाओं की व्याख्या, उत्कृष्ट विचार, सिद्धांत और जीवन-दर्शन समाहित है जो समाज के कल्याण के लिए अत्यंत प्रेरणादायक है।
वेद, एक धार्मिक ग्रंथ नहीं हैं, बल्कि यह हमारे जीवन के आदर्श मार्गदर्शक हैं। वेदों की शिक्षाएँ जीवन में सच्चे सुख, शांति, समृद्धि और समाज के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करती हैं। यह सिर्फ आत्मज्ञान की प्राप्ति का मार्ग नहीं, बल्कि समाज के कल्याण और विकास का भी सर्वाेत्तम साधन हैं। अब समय आ गया कि वेदभाषा, विश्व भाषा बने, वेदवाणी, विश्ववाणी बने क्योंकि वेद वाणी ही तो वसुधैव कुटुम्बकम् की वाणी है इसलिये वैदिक विसडम, वैश्विक विसडम् बने और वैदिक ज्ञान वैश्विक ज्ञान बने। इस ओर भारत के सारे वेद विद्वानों को कार्य करना होगा ताकि वेद भाषा जन-जन की भाषा बने और सर्व सुलभ हो सके जिससे ये सर्व हित वाले मंत्र सर्व सुलभ मंत्र बने और हम ’’वेब वल्र्ड से वेद वल्र्ड की ओर बढं़े’’।
वेदों तो हमारे ज्ञान, शिक्षा और समृद्धि के प्रमुख साधन हैं। शिक्षा और ज्ञान से व्यक्ति न केवल आर्थिक बल्कि सामाजिक और आध्यात्मिक उन्नति भी प्राप्त करता है इसलिये स्वामी दयानंद सरस्वती जी जिन्हें पुनर्जागरण युग का हिंदू मार्टिन लूथर कहा जाता है, उन्होंने संदेश दिया कि वेदों की और लौटो और भारत की प्रभुता को समझो। उन्होंने समाज को अभिनव राष्ट्रवाद और धर्म सुधार के लिये तैयार किया। उनका मानना था कि आर्य समाज के कर्तव्य धार्मिक परिधि से कहीं अधिक व्यापक हैं। उन्होंने कहा कि व्यक्ति के जीवन का उद्देश्य लोगों के शारीरिक, सामाजिक और आध्यात्मिक कल्याण के लिये कार्य करना होना चाहिये। वेदों के सिद्धांतों का पालन करके हम अपने जीवन में समृद्धि और शांति प्राप्त कर सकते हैं। वेदों का मार्ग व मंत्र आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने प्राचीन समय में थे, और इन्हें अपनाकर प्रत्येक मनुष्य अपने जीवन को सफल और समृद्ध बना सकते हैं।
स्वामी जी ने कहा कि वेद, भारतीय ज्ञान का सबसे प्राचीन और सबसे व्यापक स्रोत हैं। वेदों में जीवन के हर पहलू पर ज्ञान समाहित है चाहे वह अध्यात्मिकता हो, आचार-विचार, विज्ञान, या समाज के विभिन्न पक्षों का प्रबंधन सब कुछ वेदों में हैं। वेद न केवल आत्मा के कल्याण का मार्ग दिखाते हैं, बल्कि यह समाज के हर स्तर पर उत्थान, समृद्धि, और प्रगति हेतु भी मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा, वेदों का प्रमुख उद्देश्य मानवता को सत्य, प्रेम, करुणा और अहिंसा के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करना है। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम वेदों के उपदेशों को समझें और उन्हें जीवन में आत्मसात करें ताकि हम एक सुखी और समृद्ध समाज की ओर अग्रसर हो सकें।
वेदों की शिक्षाएं विशेष रूप से जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को संतुलित करने के लिए हैं। ये ज्ञान के शिखर पर पहुँचने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करते हैं और इसके माध्यम से हम न केवल व्यक्तिगत स्तर पर प्रगति कर सकते हैं, बल्कि समाज के सामूहिक विकास के लिए भी आवश्यक हैं।
वेदों में समाज के कल्याण और उत्थान के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए गए हैं। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा, वेदों में जो सिद्धान्त हैं, वे समाज के प्रत्येक व्यक्ति को एक दूसरे से जुड़े रहने, सहयोग और सहिष्णुता का संदेश देते हैं। वेदों के अनुसार, समाज का वास्तविक कल्याण तभी संभव है जब समाज में सभी लोग समानता, भाईचारे और प्रेमभाव से रहें।
स्वामी जी ने कहा कि वेदों में सर्वे भवन्तु सुखिनः जैसे अनेक दिव्य मंत्र है, जिसका अर्थ है कि सभी प्राणी सुखी रहें। यह सिद्धांत न केवल व्यक्तिगत विकास की बात करता है, बल्कि यह समाज के समग्र विकास को भी प्रोत्साहित करता है। स्वामी जी के अनुसार, वेदों की यह मूलभूत शिक्षा हमें यह समझाती है कि अगर हम एक समृद्ध और शांतिपूर्ण समाज बनाना चाहते हैं, तो हमें प्रत्येक व्यक्ति की भलाई और उसके अधिकारों का सम्मान करना होगा।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने यह भी कहा कि वेदों के अनुसार समाज में किसी भी प्रकार की असमानता और भेदभाव का कोई स्थान नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति का समान अधिकार है और उसे समाज में समान रूप से सम्मान मिलना चाहिए। वेदों में समग्रता का सिद्धांत है, जो हमें बताता है कि समाज का उत्थान तभी संभव है जब हम समाज के प्रत्येक वर्ग को समर्पित रूप से सहयोग और सहायता प्रदान करें।
कार्यक्रम के आयोजक, संरक्षक, फेडरेशन आॅफ डेवलपर्स एसोसिएशन, श्री दिनेश नागपाल जी, अध्यक्ष श्री नरेन्द्र यादव जी और निवेदक डा दिनेश शास्त्री जी ने सभी विशिष्ट अतिथियों का अभिनन्दन किया।
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