May 1, 2025

परमार्थ निकेतन में आयोजित श्री राम कथा की पूर्णाहुति के दिव्य अवसर पर भक्तों को स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी का पावन सान्निध्य प्राप्त हुआ

*✨परमार्थ निकेतन में आयोजित श्री राम कथा की पूर्णाहुति के दिव्य अवसर पर भक्तों को स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी का पावन सान्निध्य प्राप्त हुआ*

*💥स्वामी नारायण मन्दिर द्वारा परमार्थ निकेतन में श्रीराम कथा का दिव्य आयोजन*

*🌺कथा व्यास श्री जनमंगल दास स्वामी जी के श्रीमुख से श्रीराम कथा का गुणगान*

*🌸स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और श्री बालकृष्ण स्वामी जी का पावन सान्निध्य*

*💥प्रभु श्री राम, भारत की आत्मा*

*🌸प्रभु श्रीराम जी का जीवन, उनके आदर्श और संस्कार हमारे जीवन का पाथेय बने*

*💐स्वामी चिदानन्द सरस्वती*

ऋषिकेश, 30 अप्रैल। परमार्थ निकेतन, गंगा जी के पावन तट पर भक्तिमय श्रीराम कथा का आयोजन स्वामी नारायण मंदिर द्वारा किया गया। श्रीराम कथा में आज श्रद्धालुजनों को स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी का पावन सान्निध्य प्राप्त हुआ। कथा व्यास श्री जनमंगल दास स्वामी जी ने पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और आदरणीय श्री बालकृष्ण स्वामी जी के पावन सान्निध्य में प्रभु श्रीराम के जीवन, आदर्शों और संस्कारों का भावपूर्ण गुणगान किया।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने इस अवसर पर कहा कि प्रभु श्रीराम, भारत की आत्मा है। उनके आदर्श, मर्यादा और धैर्य प्रत्येक भारतीय के जीवन को दिशा देने वाला है। श्रीराम जी का जीवन केवल एक ऐतिहासिक गाथा नहीं, बल्कि जीवन जीने का उच्चŸाम आदर्श है।

स्वामी जी ने श्रद्धालुओं का आह्वान करते हुये कहा कि हम श्रीराम के जीवन से प्रेरणा लेकर अपने जीवन को भी मर्यादा, सेवा और करुणा का प्रतीक बनाएं। श्रीराम के आदर्शों को आत्मसात कर हम सच्चे अर्थों में भारतीय संस्कृति के संवाहक बने। श्रीराम का जीवन एक सतत साधना है सत्य, प्रेम, त्याग और सेवा की साधना है। उनका आदर्श है कि सत्ता में होकर भी विनम्र बने रहना, शक्ति होते हुए भी करुणामय बने रहना, और संघर्षों के बीच भी धर्म और मर्यादा का पालन करते रहना।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि आज के युग में जब समाज में भौतिकता की होड़ और मूल्यहीनता की आंधी है, तब श्रीराम जी का आदर्श प्रकाशस्तंभ बनकर हमें जीवन के सच्चे पथ पर ले जाने का मार्ग दिखाती है। श्रीराम जी का जीवन हमें सिखाता है कि कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी धर्म, सत्य और करुणा का मार्ग नहीं छोड़ना चाहिए।

इस अवसर पर स्वामी जी ने प्रकृति संरक्षण, स्वच्छता और सेवा के कार्यों को श्रीराम के जीवन से जोड़ते हुए कहा कि, जैसे प्रभु श्रीराम ने वनवास के दौरान प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व का आदर्श प्रस्तुत किया, वैसे ही हमें भी प्रकृति से प्रेम करना होगा।

कथा व्यास श्री जनमंगल दास स्वामी जी ने कथा में प्रभु श्रीराम के बाल लीलाओं, युवावस्था के आदर्शों और वनवास के दौरान उनके धैर्य व समर्पण की कथाओं को अत्यंत सरल, भावपूर्ण और भक्तिपूर्ण शैली में गुणगान किया। उनके श्रीमुख से निकले श्रीराम नाम के मधुर उच्चारण से समस्त वातावरण में भक्ति की अनिर्वचनीय तरंगें प्रवाहित होने लगीं। कथा का हर प्रसंग श्रद्धालुओं के हृदय को श्रीराम के प्रेम और सेवा में सराबोर कर रहा था।

स्वामी जी ने कथाव्यास श्री जनमंगल दास जी को रूद्राक्ष का पौधा भेंट कर हरित कथाओं का संदेश दिया।

यजमान श्री हसमुख भाई गुजरात की धरती से 700 से 800 श्रद्धालुओं को गंगा जी के पावन तट परमार्थ निकेतन में लगाकर श्रीराम जी की कथा के साथ गंगा स्नान, ध्यान व गंगा जी का आरती के दिव्य दर्शन कराये।