September 11, 2025

दिग्विजय दिवस, स्वामी विवेकानंद जी के शिकागो उद्बोधन की स्मृति

ऋषिकेश, 11 सितम्बर। दिग्विजय दिवस पूरे भारत व भारतीय संस्कृति के लिये गर्व का दिन है। यह दिन हमें 11 सितम्बर 1893 की उस ऐतिहासिक घड़ी की याद दिलाता है, जब भारत के युगप्रवर्तक संत और युवाओं के प्रेरणास्रोत स्वामी विवेकानंद जी ने अमेरिका के शिकागो में आयोजित विश्व धर्म संसद में अपना ओजस्वी उद्बोधन दिया था।
उनके पहले ही वाक्य “अमेरिका की बहनों और भाइयों” ने पूरे सभागार को अद्भुत ऊर्जा और भावनाओं से भर दिया। यह संबोधन मात्र एक भाषण नहीं था, बल्कि भारत की सनातन संस्कृति, वसुधैव कुटुम्बकम् की परंपरा और सार्वभौमिक भाईचारे का वैश्विक उद्घोष था। इस क्षण ने भारत की आध्यात्मिक धरोहर को पूरी दुनिया के सामने स्थापित किया और भारतवासियों में आत्मगौरव की भावना जागृत की।
परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष, परम श्रद्धेय स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने अपनी विदेश यात्रा के दौरान भारत लौटने से पूर्व शिकागो स्थित उस ऐतिहासिक विश्व धर्म संसद स्थल पर जाकर स्वामी विवेकानन्द जी को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
19वीं सदी का उत्तरार्द्ध भारत के लिए गुलामी और निराशा का समय था। विश्व मंच पर भारत को एक दीन-हीन राष्ट्र के रूप में देखा जाता था। ऐसे समय में स्वामी विवेकानंद जी ने अपने व्यक्तित्व और विचारों से यह साबित कर दिया कि भारत केवल भौगोलिक इकाई नहीं, बल्कि आध्यात्मिक चेतना का केंद्र है। उनके शब्दों ने दुनिया को बताया कि भारत की संस्कृति सहिष्णुता, प्रेम, सेवा और करुणा की अमिट नींव पर आधारित है।
स्वामी विवेकानंद का संपूर्ण जीवन और विशेषकर शिकागो का उद्बोधन युवाओं के लिए अदम्य प्रेरणा का स्रोत है। उन्होंने युवाओं का आह्वान करते हुए कहा था उठो, जागो और अपने लक्ष्य की प्राप्ति तक मत रुको।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि दिग्विजय अर्थात् विजय की उद्घोषणा। स्वामी विवेकानंद जी का शिकागो उद्बोधन वास्तव में भारत की सांस्कृतिक विजय का दिन है। यह दिन हमें स्मरण कराता है कि भारत की असली शक्ति उसकी सनातन धरोहर, अध्यात्मिकता और उसकी सार्वभौमिक दृष्टि है।
आज जब पूरी दुनिया संघर्ष, युद्ध, आतंकवाद और जलवायु संकट जैसी चुनौतियों से जूझ रही है, ऐसे में स्वामी विवेकानंद जी का संदेश और भी अधिक प्रासंगिक हो जाता है। उनका यह उद्घोष है कि सभी धर्म एक ही लक्ष्य की ओर ले जाते हैं तथा मानवता को आपसी भाईचारे और शांति का मार्ग दिखाता है।
भारत आज जिस आत्मविश्वास के साथ विश्व मंच पर खड़ा है, उसके मूल में वही आध्यात्मिक शक्ति है जिसकी झलक स्वामी विवेकानंद जी ने 1893 में शिकागो में प्रस्तुत की थी।
स्वामी जी ने कहा कि “दिग्विजय दिवस” केवल एक ऐतिहासिक घटना की स्मृति नहीं, बल्कि भारत की शाश्वत संस्कृति और मानवीय मूल्यों का उत्सव है। यह दिन हर भारतीय को यह याद दिलाता है कि हमारी जड़ें कितनी गहरी हैं और हमारी संस्कृति कितनी व्यापक है। स्वामी विवेकानंद जी ने जो दीपक 1893 में प्रज्वलित किया था, वह आज भी भारत को विश्वगुरु बनने की दिशा में प्रकाश प्रदान कर रहा है।