September 8, 2024

बाबा सहाब डाँ. अम्बेडकर की देन: महिलाओं को संविधान मे बराबरी का दर्जा के लिए

महिलाओ के लिए विशेष

आज हम आज आपसे उस पुरातन भारत के बारे में भारतीय महिलाएं के पूर्व इतिहास के बारे में कुछ जानकारी दे रहे है जहां नारी धर्म ग्रंथों में देवी की तरह पूजी जाती थी लेकिन असल भारतीय समाज में उसकी सच्चाई एक भोग विलास के साधन से बढ़कर न थी ..*भारत में भी अब नारी 18 वर्ष की आयु के बाद ही बालिग़ अर्थात विवाह योग्य मानी जाती है.परंतु मशहूर अमेरिकन इतिहासकार कैथरीन मायो (Katherine Mayo) ने अपनी बहुचर्चित पुस्तक “मदर इंडिया” (जो 1927 में छपी थी) में स्पष्ट लिखा है कि…भारत का रूढ़िवादी ब्राह्मणवादी वर्ग नारी के लिए 12 वर्ष की विवाह/सहवास आयु पर ही अडिग था.*

*1860 में तो यह आयु 10 वर्ष थी. इसके 30 साल बाद 1891में अंग्रेजी हकुमत ने काफी विरोध के बाद यह आयु 12 वर्ष कर दी.*

*कट्टरपंथी मनुवादियो ने 34 साल तक इसमें कोई परिवर्तन नहीं होने दिया. इसके बाद 1922 में तब की केंद्रीय विधान सभा में 13 वर्ष का बिल लाया गया, परंतु धर्म के ठेकेदारों के भारी विरोध के कारण वह बिल पास ही नहीं हो सका.*

*1924 में हरीसिंह गौड़ ने बिल पेश किया. वे सहवास की आयु 14 वर्ष चाहते थे.*

*इस बिल का सबसे ज्यादा विरोध पंडित मदन मोहन #मालवीय ने किया, जिसके लिए ‘चाँद’ पत्रिका ने उनपर लानत भेजी थी. अंत में सिलेक्ट कमेटी ने 13 वर्ष पर सहमति दी और इस तरह 34 वर्ष बाद 1925 में 13 वर्ष की सहवास आयु का बिल पास हुआ.*

*6 से 12 वर्ष की उम्र की कोई बच्ची, सेक्स का विरोध नहीं कर सकती थी उस स्थिति में तो और भी नहीं, जब उसके दिमाग में यह ठूस दिया जाता था कि “पति ही उसका भगवान और मालिक हैं , देवता है.”*

*जरा सोचिये! ऐसी बच्चियों के साथ सेक्स करने के बाद उनकी शारीरिक हालत क्या होती थी? इसका रोंगटे खड़े कर देने वाला वर्णन Katherine Mayo ने अपनी किताब “Mother India” में किया है कि किस तरह बच्चियों की जांघ की हड्डियां खिसक जाती थी, मांस लटक जाता था और कुछ तो अपाहिज तक हो जाती थीं….6 और 7 वर्ष की पत्नियों में कई तो विवाह के तीन दिन बाद ही तड़प तड़प कर मर जाती थीं.*

*स्त्रियों के लिए इतनी महान थी हमारी मनुवादी संस्कृति!*

*अगर भारत में अंग्रेज नहीं आते तो भारतीय नारी कभी भी उस नारकीय जीवन से बाहर आ ही नहीं सकती थी.*

*संविधान बनने से पहले स्त्रियों का कोई अधिकार नहीं था.*

*#मनुस्मृति के अनुसार बचपन में पिता के अंडर, जवानी में पति की दासी और बुढ़ापे मे बेटे की कृपा पर निर्भर रहती थी.*

*बाबा साहब डॉ #अंबेडकर ने संविधान मे इनको बराबरी का दर्जा दिया. संपत्ति का अधिकार, नौकरी में बराबरी का अधिकार, ये सब बाबा साहब की देन है.*

*बाबा साहब कहते थे: “औरत किसी भी जाति की हो, उसके अपने जाति में वही स्थिति थी जो समाज मे अनुसूचित जातियो की थी.*

*औरत का नाम नहीं होता था. वह किसी की बीवी, किसी की मां, किसी की दादी के नाम से जानी जाती थी.*

*भारतीय मनुवादियो पुरुषों की नजर में महिला बच्चा पैदा करे और पति की दासी बनकर रहे. औरतें इनके लिये अय्याशी के साधन के सिवा कुछ नहीं.*

*महिलाओं को समान अधिकार भारतीय संविधान एवं हिन्दू कोड बिल से प्राप्त हुए है, जो बाबा सहाब डाँ. अम्बेडकर की देन है.*

*लेकिन बिडम्बना है कि आज भी जो महिलायें जागरुक नही हैं, वह आज भी अधिकारो से वंचित जीवन गुजार रही है. विकृत मानसिकता के लोग आधुनिक भारत में भी पूर्व की विकृत मानसिकता के द्योतक होकर महिलाओं का दिन-रात शोषण कर रहे हैं.* स्वयं आज के भारत की 95 प्रतिशत पढ़ी लिखी महिलाए भी धर्म के जाल में फस कर अपना मानसिक एवम आर्थिक शोषण करा रही हैं वो समझती हैं उनको जो अधिकार आज प्राप्त है वो सब ईश्वर , अल्लाह एवम गॉड की पूजा, इबादत और प्रार्थना की देन है…वो खुद को ऊंचे जाति, धर्म से होने और आज अपने पास उपलब्ध पैसे के घमंड, अधिकारों और शानो शौकत में ऐसे मशगूल है जैसे की इन सब की अधिकारी तो वो उनको धर्म के ठेकेदारों पंडित, मौलवी, पादरियों और देवी देवताओं, अल्लाह एवम गॉड की कृपा की वजह से सदियों से हैं। भारतीय नारी अपने काले इतिहास की जानकारी न होने के कारण खुद को धर्म के पाखंड जाल से इस डर से निकलने की हिम्मत नहीं कर पाती की कही उनके देवी देवता, अल्लाह और गॉड नाराज न हो जाए और उनके पास उपलब्ध संपति, भोग विलास के अधिकारों में कही कोई कटौती न हो जाए…वो सभी भारतीय महिलाएं अपने असली भगवान, अल्लाह और गॉड गुलाम भारत में अंग्रेज और आजाद भारत में Dr. Baba shaab Ambedkar को अपने असली भगवान के रूप में ना जानती है ना मानती है ।

*उनको ये पता ही नही है की बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर ही भारतीय महिलाओं की माँ से बढ़कर है जिन्होंने संविधान और हिन्दू कोड़ बिल के द्वारा महिलाओं को IAS, IPS, PCS ,DOCTOR, इन्जीनियर और स्पेस में जाने का मौका मिला. वे CM, PM व राष्ट्रपति पद तक काबिज रही. लेकिन दुःख इस बात का है कि वो आज प्राप्त अपने शिक्षा,स्वस्थ ,संपति, सुरक्षा एवम सबसे महत्वपूर्ण मताधिकार के अधिकारो का श्रोत भारत के संविधान को नही जानती ना ही उसके जनक डॉ. बाबा साहब अम्बेडकर को मानती हैं।