हरिद्वार। विश्व गुरु भारत परिषद के अन्तर्राष्ट्रीय अध्यक्ष राजगुरु धर्म दत्त दंडीनाथ महाराज ने शारदा-द्वारिका व ज्योतिष पीठ पर घोषित किए गए शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती व स्वामी अविमुक्तेश्वरांनद को शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद महाराज का केवल मैनेजर मात्र बताया। उनका कहना है कि स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज इनसे नाराज थे और उन्होंने शंकराचार्य पद के लिए उक्त दोनों को अयोग्य ठहराया था। उन्होंने कहाकि विद्वानों की संस्थान विश्वगुरु भारत परिषद ने इनको शंकराचार्य बनाने की घोषणा को सिरे से खारिज कर दिया है।
राजगुरु धर्म दत्त दंडीनाथ महाराज ने कहाकि इन लोगों को स्वामी जी ने लेनदेन की छूट प्रदान की थी, जिस कारण से ये स्वंय को उनका उत्तराधिकारी मानने लगे थे। उन्होंने कहाकि ब्रह्मलीन स्वामी जी महाराज ने अपने जीते जी किसी के नाम वसीयत नहीं की। केवल कहने मात्र से कोई शंकराचार्य नहीं बन जाता। उन्होंने कहाकि शंकराचार्य पद वसीयत का विषय नहीं है। ये धर्म का मामला है, यहां विद्वान व्यक्ति ही पीठ पर विराजमान हो सकता है। उन्होंने कि उक्त दोनों को किसी विद्वान दण्डी स्वामी के पास जाकर उनसे अनुरोध कर उन्हें इस गद्दी पर विराजमान करना चाहिए।
उन्होंने कहाकि अयोग्य को शंकराचार्य की पीठ पर नहीं बैठाया जा सकता। कहाकि ब्राह्मणों में भी भूमिहार, गोस्वामी, त्यागी, भाट, महापात्र आदि को ब्राह्मण होते हुए भी शंकराचार्य नहीं बनाया जा सकता। इसके साथ ही नेपाली व बंगाली मूल के व्यक्ति को भी शंकराचार्य इसलिए नहीं बनाया जा सकता क्योंकि ये मांस भक्क्षी ब्राह्मण होते हैं। उन्होंने कहाकि शंकराचार्य महाराज के शिष्यों व ब्रह्मचारियों मंे इनका शुरू से ही विरोध रहा है। ये लोग केवल पैसे के लिए शंकराचार्य जी के पास लगे हुए थे। यही कारण है कि तीनों लोगों ने शंकराचार्य जी की सम्पत्ति की बंदरबांट कर ली। उन्होंने कहाकि इस खेल के पीछे कांग्रेस के कुछ बड़े नेता और हरिद्वार के कुछ कांग्रेसी संत भी इसमें शामिल हैं।
उन्होंने कहाकि राजसत्ता आज धर्मसत्ता को खाने पर आमादा है। कहीं भाजपा अपना शंकराचार्य बना रही है तो कहीं कांग्रेस अपना शंकराचार्य बनाने पर आमादा है। उन्होंने कहाकि जब ऐसे लोग शंकराचार्य बनेंगे तो वे क्या धर्म सत्ता को संभालेंगे। कहाकि जिन लोगों की घोषणा की गई है वह राहुल गांधी की भारत जोड़ों यात्रा का समर्थन कर रहे हैं। कांग्रेस का समर्थन करने वाले हैं। जबकि धर्मसत्ता किसी की समर्थक नहीं होती वह सभी के प्रति समान रूप से कार्य करती है। उन्होंने कहाकि जो कुछ भी हो रहा है वह धर्म को गर्त मंे धकेलने वाला कार्य है। इसमें केन्द्र सरकार को हस्तक्षेप करते हुए मामले की जांच करानी चाहिए। उन्होंने कहाकि जिस वसीयत का जिक्र किया जा रहा है उसे आज तक सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया। कहाकि शंकराचार्य जी ने कोई वसीयत की ही नहीं तो वे कैसे दिखाएंगे।
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