September 12, 2025

तीन पीढ़ियों का संगम, भारतीय संस्कृति की धरोहर

*✨तीन पीढ़ियों का संगम, भारतीय संस्कृति की धरोहर*

*💥सच्ची विरासत संपत्ति नहीं, बल्कि वे संस्कार हैं जो हर परिस्थिति में सहारा देते हैं*

*🌺दादा-दादी, माता-पिता और बच्चे साथ बैठें तो वह अतीत, वर्तमान और भविष्य का दिव्य मिलन*

*🌸पैसों की नहीं, परम्पराओं की विरासत दें*

*💐कार तो दें, परन्तु संस्कार भी दें*

*🙏🏾स्वामी चिदानन्द सरस्वती*

इन्दौर/ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी विदेश यात्रा के पश्चात भारत पधारे। विगत पांच सप्ताह से वे विदेश की भूमि पर भारतीय संस्कृति, योग, अध्यात्म और जीवन-मूल्यों की दिव्य गंगा प्रवाहित कर रहे थे। जहाँ-जहाँ भी वे गए, वहाँ भारतीय संस्कृति की सुगंध और सनातन मूल्यों का संदेश प्रसारित किया।

आज इन्दौर में टीएएलइएस एवं ईओ परिवार द्वारा आयोजित विशेष कार्यक्रम “उद्देश्यपूर्ण हस्तांतरण-पीढ़ियों के मध्य ज्ञान, मूल्य और विरासत के संग सेतु निर्माण’’ में उन्हें विशेष रूप से आमंत्रित किया गया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य केवल व्यवसाय और उत्तराधिकार तक सीमित नहीं, बल्कि जीवन को अर्थपूर्ण बनाने वाली उस परंपरा को आगे बढ़ाना है, जिसमें ज्ञान, संस्कार और सेवा की भावना आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाई जाए।

स्वामी जी ने अपने पावन संदेश में कहा कि वास्तविक विरासत धन नहीं, बल्कि संस्कार और मूल्य हैं। जब बुजुर्गों का अनुभव और युवाओं का उत्साह एक साथ आता है तो परिवार, समाज और राष्ट्र की शक्ति कई गुना बढ़ जाती है। उन्होंने आह्वान किया कि हर परिवार अपनी अगली पीढ़ी को केवल संपत्ति ही नहीं, बल्कि सेवा, करुणा और आध्यात्मिक दृष्टि की अनमोल धरोहर भी सौंपे।

आज की दुनिया तेज रफ्तार, नवाचार और निरंतर परिवर्तन से युक्त है। प्रतिस्पर्धा और प्रगति के इस दौर में अक्सर यह प्रश्न उठता है कि जीवन और व्यवसाय दोनों में स्थायी मूल्य, शाश्वत ज्ञान और उद्देश्यपूर्ण दृष्टि को हम कैसे जीवित रखें? यह केवल आर्थिक सफलता का विषय नहीं है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को वह अमूल्य धरोहर देने का भी प्रश्न है जो जीवन को अर्थपूर्ण और पूर्ण बनाती है।

इन्हीं विचारों पर प्रकाश डालने के लिए स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी एक विशेष संवाद का नेतृत्व किय। यह सत्र न केवल परिवारों और उद्यमियों के लिए, बल्कि उन सभी के लिए महत्वपूर्ण है जो मानते हैं कि जीवन केवल अर्जन और उपभोग तक सीमित नहीं है, बल्कि साझा मूल्यों और उद्देश्य से प्रेरित एक सतत यात्रा है।

हर युग में यह प्रश्न रहा है कि पुरानी और नई पीढ़ियों के बीच की खाई को कैसे पाटा जाए। वृद्धों के अनुभव और ज्ञान के साथ युवाओं का उत्साह और ऊर्जा जब ये दोनों एक साथ आते हैं तो न केवल परिवार, बल्कि समाज और राष्ट्र भी नई ऊँचाइयों को छूता है।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि भारतीय संस्कृति में परिवार केवल संस्था नहीं, बल्कि जीवन का विश्वविद्यालय है। दादा-दादी, माता-पिता और बच्चे साथ बैठें तो वह अतीत, वर्तमान और भविष्य का दिव्य मिलन होता है। यही मिलन जीवन की सबसे सुंदर तस्वीर रचता है।

हर पीढ़ी को अगली पीढ़ी को मशाल सौंपनी होती है यह मशाल धन की नहीं, बल्कि ज्ञान, संस्कार और उद्देश्य की होनी चाहिए। परिवार पहली पाठशाला है। दादा-दादी अनुभव और नैतिकता सिखाते हैं, माता-पिता त्याग और जिम्मेदारी का संस्कार देते हैं, और बच्चे मासूमियत व ऊर्जा से जीवन को जीवंत बना देते हैं।

मनुस्मृति कहती है, तीन पीढ़ियों का साथ कुल-समृद्धि का प्रतीक है। बुजुर्ग अनुभव और आशीर्वाद, मध्यम पीढ़ी श्रम और उत्तरदायित्व और युवा पीढ़ी ऊर्जा और भविष्य का प्रतीक है। सच्ची विरासत संपत्ति नहीं, बल्कि वे संस्कार हैं जो हर परिस्थिति में सहारा देते हैं।

स्वामी जी ने कहा कि परिवार अपनापन से चलता है और व्यवसाय विश्वास से। दोनों में पारदर्शिता और संवाद ही स्थिरता लाते हैं। अंततः, धन क्षणभंगुर है, लेकिन संस्कार शाश्वत धरोहर हैं। यही रोशनी परिवार, समाज और राष्ट्र को आलोकित करती है।

स्वामी जी ने कहा कि विरासत केवल संपत्ति और व्यवसाय तक सीमित नहीं है। वास्तविक विरासत वे संस्कार, मूल्य और परंपराएँ हैं जो हमें जीवनभर दिशा देते हैं। उत्तराधिकार और नेतृत्व के क्रम में आध्यात्मिक मूल्य हमें स्थिरता और नैतिक दृष्टि प्रदान करते हैं। व्यवसाय केवल लाभ कमाने के लिए नहीं, बल्कि समाज को लौटाने का माध्यम भी होना चाहिए। व्यवसायी और उद्यमी केवल आर्थिक प्रगति ही नहीं, बल्कि सामाजिक उत्तरदायित्व और पर्यावरणीय संतुलन को भी अपनी प्राथमिकता बना सकते हैं।

इस दिव्य कार्यक्रम का आयोजन श्री तपन अग्रवाल जी, श्रीमती अदीति जी, श्री अनुज राठी जी, श्री नितेश शाहरा जी, श्रीमती माधुरी शाहरा जी, श्री मनीष शाहरा जी एवं सम्पूर्ण ईओ परिवार द्वारा किया गया। ईओ परिवार, जिसकी शाखाएँ पूरे भारत में हैं, सभी शाखाओं के पदाधिकारियों ने इसमें सहभाग किया। व्यापार जगत में सफलता प्राप्त करने के बाद जीवन में प्रसन्नता एवं संतुलन बनाए रखने हेतु ईओ परिवार पूर्ण रूप से संलग्न है।