कवियत्री में कविता कहती है कि चुनाव खत्म हो चुका है। अब मानवता की पुकार सुनों। देश में लोग तड़प रहे हैं उन्हें बचाने की कोशिश करो।
किसी को मिले नहीं भोजन
जिसे मिले उसके नखरे अपार
कराह उठी देख तस्वीर मैं
कोई सुद्धबुद्ध लो अब सरकार
खेलवा खत्म हुआ चुनाव का
अब तो मानवताकी सुनो पुकार
अपने तड़प रहे अपनों को बचाने
सियासत खत्म करो अब देखो जख्म अपार।।
चीख रही दिलों मे वेदना सबकी
जैसे ना हो तुम्हें किसी से सरोकार।
छोड़ो कुर्सी का लालच अब तो
इंसान सुना रहा दर्द है अपार
बिलख रहे बहुत घरों मे भूखे बच्चे
मां बाप की लाशों से लिपट रो रहे बच्चे
आंखें खोलो देखो मौत का तांडव बिखरा
सरकार अब भी कुर्सी की चाहत मे तू बिखरा।।
– वीना आडवाणी “तन्वी”
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