कानपुर,
वहाँ उन्होंने एक जन-अभिनंदन समारोह में हिस्सा लिया. इस समारोह में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी और प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल भी उनके साथ थीं. उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ज़िले में स्थित परौंख गाँव की ज़मीन पर जब वे अपने हेलीकॉप्टर से उतरे, तो सबसे पहले उन्होंने अपनी जन्म-भूमि पर नतमस्तक होकर मिट्टी को स्पर्श किया और उसे अपने माथे से लगाया.
समारोह में अपने भाषण के दौरान उन्होंने कहा, “मैंने कभी सपने में भी सोचा नहीं था कि इस गाँव के मेरे जैसे सामान्य बालक को कभी देश के सर्वोच्च पद के दायित्व-निर्वहन का सौभाग्य मिलेगा. लेकिन हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था ने यह करके दिखा दिया.”राष्ट्रपति कोविंद ने दिल्ली से कानपुर तक का सफ़र एक विशेष ट्रेन में किया. इस दौरान उन्होंने कानपुर देहात के झींझक और रूरा रेलवे स्टेशनों पर जनता का अभिवादन स्वीकार किया और अपने स्कूल और सामाजिक जीवन के शुरुआती दिनों के पुराने परिचितों से मुलाक़ात की.उन्होंने कहा कि “आज मैं जहाँ तक पहुँचा हूँ, उसका श्रेय इस गाँव की मिट्टी और इस क्षेत्र तथा आप सब लोगों के स्नेह व आशीर्वाद को जाता है.”
भारतीय संस्कृति में ‘मातृ देवो भव’, ‘पितृ देवो भव’, ‘आचार्य देवो भव’ की शिक्षा दी जाती है. हमारे घर में भी यही सीख दी जाती थी. माता-पिता और गुरु तथा बड़ों का सम्मान करना हमारी ग्रामीण संस्कृति में अधिक स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है.”वे बोले, “गाँव में सबसे वृद्ध महिला को माता तथा बुजुर्ग पुरुष को पिता का दर्जा देने का संस्कार मेरे परिवार में रहा, चाहे वे किसी भी जाति, वर्ग या संप्रदाय के हों. आज मुझे यह देखकर खुशी हुई कि बड़ों का सम्मान करने की हमारे परिवार की यह परंपरा अब भी जारी है.”“मैं कहीं भी रहूँ, मेरे गाँव की मिट्टी की खुशबू और मेरे गाँव के निवासियों की यादें सदैव मेरे हृदय में विद्यमान रहती हैं. मेरे लिए परौंख केवल एक गाँव नहीं है, यह मेरी मातृभूमि है, जहाँ से मुझे आगे बढ़कर देश-सेवा की सदैव प्रेरणा मिलती रही.”
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