पश्चिम बंगाल में भाजपा की सबसे शीर्ष पराक्रमी चुनावी जोड़ी को बड़े अंतर से मात देकर ममता बनर्जी बेशक विपक्ष की एक प्रभावशाली और ताकतवर नेता के रूप में उभर कर सामने आई हैं मगर राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी नेतृत्व की कमान थामने की उनकी राह आसान नहीं है। लगातार चुनावी नाकामियों के बीच राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा को रोकने के लिए विपक्षी गोलबंदी की पैरोकारी करती रही कांग्रेस खुद दीदी की दिल्ली की राह रोकने में कसर नहीं छोड़ेगी। वहीं कुछ बड़े क्षेत्रीय छत्रपों की ममता के नेतृत्व की रहनुमाई को सहजता से स्वीकार करने की हिचक भी इसमें अड़चन बनेगी।
बंगाल चुनाव में भाजपा के दो सौ सीटों के साथ जीत के दावे की जैसे ही हवा निकली वैसे ही उत्साह में कुछ छोटे क्षेत्रीय दलों के नेताओं से लेकर विशेषज्ञों ने ममता बनर्जी को 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए विपक्ष का चुनावी चेहरा बनाए जाने की भविष्यवाणी शुरू कर दी। लेकिन चुनाव नतीजों के उत्साह में शुरू हुई ऐसी भविष्यवाणियों से इतर राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी विकल्प और उसका एक सर्वमान्य चेहरा बनने का सियासी समीकरण इतना भी सहज नहीं है।
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