ववृकषिकेश। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष पूज्य स्वामी चिदानन्दजी महाराज और रामसनेही धर्माचार्य रायण अर्वाचीन पीठ संस्थान पुष्कर के अधिष्ठाता एवं परमार्थ निकेतन संस्कृत महाविद्यालय के पूर्व छात्र स्वामी भगवानदास जी शास्त्री महाराज की 40 वर्षों के बाद परमार्थ निकेतन में भेंटवार्ता हुई।
दोनों पूज्य संतों ने पर्यावरण व नदियों के संरक्षण, ऋषिकेश की स्वच्छता व दिव्यता, वृक्षारोपण, योग नगरी ऋषिकेश और माँ गंगा की पवित्रता को बनाये रखने के लिये पूज्य संतों के योगदान के विषय में विशद चर्चा की।
पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने माँ गंगा और अन्य नदियों के किनारों पर वृक्षारोपण के विषय में चर्चा करते हुये कहा कि जहाँ वन होते हैं, वहाँ वर्षा अधिक होती है, जिससे नदियों का जलस्तर भी बढ़ जाता है। वर्तमान समय में देखें तो देश की अनेक नदियाँ मृत हो रही है उन्हें पुनः जीवित करने के लिये वृक्षारोपण वृहद स्तर पर करना होगा।
पूज्य स्वामी जी ने कहा कि उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्य में बड़ी मात्रा में जंगल हैं। इन जंगलों के पेड़ों से गिरने वाली पत्तियाँ और छाल नीचे गिरने से वर्षा जल को तेज़ी से बहने नहीं देती और वह जल धीरे-धीरे ज़मीन के अंदर रिसता जाता है, इससे भी जल संरक्षण और जल चक्र पूरा होता है इसलिये नदियोेेेेेेें के किनारों पर वृ़क्षारोपण अत्यंत आवश्यक है। साथ ही नदियों के किनारों पर स्थित घने जंगल व पेड़-पौधे नदियों को स्वतः साफ रखने में मदद करते हैं।
पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि ऋषिकेश योगनगरी है और योग को तो वेदों में भी विशेष स्थान प्राप्त है। विष्णु पुराण में भी कहा गया है कि ‘‘जीवात्मा तथा परमात्मा का पूर्णतया मिलन ही योग है।’’अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर योग की बढ़ती स्वीकारोक्ति भारत के लिये गौरव का विषय है। इस अवसर पर पूज्य स्वामी जी ने परमार्थ निकेतन द्वारा आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय योग महोत्सव के विषय में जानकारी प्रदान की।
रामसनेही धर्माचार्य रायण अर्वाचीन पीठ संस्थान पुष्कर के अधिष्ठाता पूज्य स्वामी भगवानदास शास्त्री जी महाराज ने कहा कि पूज्य स्वामी जी महाराज से 40 वर्षो बाद मिलकर एक दिव्य अनुभूति हो रही है तथा उनके नेतृत्व में परमार्थ निकेतन का दिव्य और भव्य स्वरूप का दर्शन कर मन प्रसन्न हो गया। उन्होंने कहा कि पूज्य स्वामी जी नदियों और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में अद्भुत कार्य कर रहे हैं वास्तव में यही वसुधैव कुटुम्बकम् का मूल मंत्र भी है।
पूज्य स्वामी जी ने माँ गंगा के किनारों पर तथा राजस्थान की धरती पर हरीतिमा संर्वद्धन का भी उनसे संकल्प कराया।
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